SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 201
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 172 सुखिया डागलिया पाण्डुगोल पोसालेचा बाकीलिया सहात्रेती नागणा खीमाणदिया वडेरा जोगणेचा सोनाणां आड़ेचा चिंचड़ा निवाटा। आचार्य भावदेवसूरि ने वि.सं 912 में बाठिया जाति को आबु के पास परमा नाम के गांव के राव माधुदेवादि को प्रतिबोधित कर जैन बनाया।' आचार्य कृष्णार्षि ने नागपुर में नारायण नामक सेठ जो ब्राह्मणधर्म पालता था, उसने जैन धर्म स्वीकार कर उसे बरडिया गोत्र दिया।' संघी को मुनि श्री ज्ञानसुन्दर ने पंवार राजपूत माना है। ननवाणा बोहरा का नामकरण नंदवाणा गांव के आधार पर हुआ। वि.सं 332 में आचार्य धर्मघोष सूरि विहार करते हुए अजयगढ़ के आस-पास ज्येष्टापुर में पधारे तब पंवार रायसूर को प्रतिबोध देकर जैन बनाया। राव सूर की संतान होने के कारण ये सुराणा कहलाए। वि.सं 332 में आचार्य धर्मघोष सूरि बणथलि नगर में पधारे, वहाँ के चौहान राज पृथ्वीपालादि को प्रतिबोध देकर विधि विधान से जैन बनाया। ये भणवट जाति कहलाई।' मुनि श्री ज्ञानसुन्दर जी के अनुसार कई भारों ने भणवटों के लिये एक कथित ख्यात बना रही है कि संवत् 910 में पाट्टण के चौहान भूरसिंह ने राजा का रोग मिटाकर जैन बनाया, उस भूरसिंह की संतान भणवट कहलाई। यह कथन सर्वथा मिथ्या है, कारण अव्वल तो पारण में किसी समय चौहानों का राज ही नहीं रहा और न पारटण की राजधानी में भूरसिंह नाम का कोई राजा ही हुआ। यह उपकेशगच्छ कालांतर में कमलागच्छ कहा गया। इस गच्छ की पोशाले- राजस्थान के विविध स्थानों पर पाई जाती है। अन्य गच्छों द्वारा प्रतिबोधित गोत्र कोरंट गच्छ के आचार्यों ने 34 ओसवाल गोत्रों को प्रतिबोधित किया - माण्डोत, सुन्धेचा, ध्रुवगोता, रातड़िया, बोथरा (बच्छावत), मुकीम, फोफलिया, कोठारी, कोटड़िया, धाडिवाल, धाकड़, नागगोत्रा, नागसेठिया, धरकट, खींवसरा, सोनेचा, 1. भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास, उत्तरार्द्ध, पृ 1498 2. वही, पृ 1499 3. वही, पृ 1500 4. वही, पृ 1501 5. वही, पृ 1501 6. वही, पृ102 7. वही, पृ1502 8. वही, पृ1502 9. जैन जाति महोदय, पृ82 For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy