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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 146 ग्यारहवां अधिवेशन - मद्रास में प्रथम अधिवेशन 26, 27, 28 फरवरी, 1906 को मोरवी में हुआ। दुर्लभजी झवेरी, फादर ऑफ दी कांफ्रेंस थे। अजमेर के रायसाहब सेठ चांदमल जी को प्रमुख बनाया गया। इस अधिवेशन से साधु संस्था और श्रावक संघ का विशाल परिचय प्राप्त हुआ। द्वितीय अधिवेशन, रतलाम में 27, 28, 29 मार्च 1908 को हुआ। इसके प्रमुख सेठ केवलचंदजी त्रिभुवनदास जी थे। इसमें स्पष्ट कहा गया कि जैन कोई जाति न थी, जैन कोई बाड़ा न थी, जैन कोई देश न थी, जैन सघली जाति मा छ। तृतीय अधिवेशन 10, 3, 12 मार्च 1909 को हुआ। इसके प्रमुख बाल मुकुन्दजी सतारा वाले थे। - चतुर्थ अधिवेशन जालंधर में 27, 28, 29 मार्च 1910 को हुआ। इसके प्रमुख उम्मेदमलजी लोढ़ा थे। पंचम अधिवेशन सिकन्दराबाद में 12, 13, 14 अप्रेल 1913 को हुआ। इसके प्रमुख बलगांव के लछमनदास मुलतानमल थे। षष्ट अधिवेशन मलकापुर में 7, 8, 9 जून 1924 को हुआ। इसके प्रमुख दानवीर सेठ मेघजी थोमण थे। सातवें आठवें अधिवेशन में क्रमश: अगरचंद भैरूदान सेठिया और वा. मो शाह सभापति पद पर विराजे। अजमेर का साधु सम्मेलन स्थानकवासी साधु समाज की महत्वपूर्ण घटना है। यह सम्मेलन 5 अप्रेल 1933 से प्रारम्भ होकर 19 अप्रैल, 1933 को समाप्त हुआ। इसमें स्थानकवासी समुदाय के 30 में से 26 सम्प्रदायों ने भाग लिया। इसमें 463 साधु 332 साध्वियों ने भाग लिये। दसवां अधिवेशन घाटकोपर में हुआ। इसके प्रमुख सेठ वीर चंद्र भाई मेघजी थोमण थे। ग्यारहवां अधिवेशन मद्रास में हुआ श्री कुन्दनमलजी फिरोदिया इसके प्रमुख थे। बारहवां अधिवेशन सादड़ी में हुआ। जो बीज अजमेर सम्मेलन में बोया गया था, अब उसका फल सादड़ी में प्राप्त हुआ। इस सम्मेलन में जैनधर्म दिवाकर आचार्य आत्माराम जी महाराज को आचार्य मान लिया गया। श्री गणेशीलाल जी महाराज के लिये उपाचार्य का पद नियत किया गया। उस समय 16 मंत्री बनाए गये, किन्तु 13 ने ही दायित्व संभाला। 1. प्रायश्चित __ श्री आनन्द ऋषि जी महाराज- प्रधानमंत्री For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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