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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir नि:शेषसिद्धान्तविचार-पर्याये तत्तो य वुड्ढसीले आयारे संपया चउद्धेसा ४ । चरणं तु संजमो ऊ तहियं निश्चतु उवओगी ॥ २५६६ बहुसुय १ परिजियसुत्ते २ विवित्तमुत्ते य हाइ बोद्धब्वे ३ । घोसविसुद्धिकरे या४ चउहा सुयसंपया होइ ॥२५९ ॥ घोसा उदात्तमाई तेहिं विसुद्ध तु घोसपरिसुद्ध। एसा सुओषसंपय सरीरसंपयमओ वाच्छ ॥ २६२ ॥ आरोह-परीणाहो १ तह य अणुत्तप्पया सरीरंमि २। पडिपुण्णमिदिएहि य ३ थिरसंघयणो य बोद्धव्वो ४॥ २६३॥ तपु लज्जाए धाऊ अलजणीओ अहीणसव्वंगी । होइ अणुत्तप्पेसो अविगलइंदी उ पडिपुण्णो ॥ २६५॥ वचनसंपत् यथा आदेज १ महुरवयणे २ अनिसियवयणो ३ तहा असंदिद्धों। आदेज गज्झवको अत्थवगाढ भवे महुरं॥ २६७॥ वायणभेया चउरो विजिओहिसणा १ समुहिसणओ अ २ । परिनिव्वयनिवायाए ३ निजवणा चेव अत्थस्स ॥ २७० ।। 'विजिय'त्ति परीक्ष्येत्यर्थः। निजवओ अत्थस्स जो उ वियाणाइ अत्थत्तस्स । अत्थेण वि निव्वहई अत्थं पि कहेइज' भणियं ॥ २७५ ॥ मइसंपय चउभेया उग्गह १ ईहा २ अवाय ३ धारणया ४ । उग्गहमइ छब्भेया तत्थ इमा होइनायव्धा ॥ २७६॥ खिप्प १ बहु २ बहुविह' च ३ धुव ४ अणिस्सिय ५ तह य होइ असंदिद्ध। ओगिण्हइ एवीहा अवायमविधारणा चेव ।।२७७।। एत्तो उपओगमई चउव्विहा होइ आणुपुवीए । आय १ पुरिसच २ खेत्तं ३ वत्थु वि य पउंजए वायं ॥ २८३॥ बहुजणजोगं खेत्तं १ पेहे तह फलगपीढमाइण्णं २ । पासासु पए ३ दोषिण वि काले य समाणप कालं ४॥ ॥ इति द्वात्रिंशत् स्थानानि । ततश्च-- जा भणिया बत्तीसा तं छोडूण विणयपडिवति । चउभेयं तो होइ छत्तीसा एस ठाणाणं ॥ ३०१ ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020506
Book TitleNishesh Siddhant Vichar Paryay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year1973
Total Pages181
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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