SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir पवहारस्य विचारा: कप्पइ चेइयघरे ठाउं। अत्र कारणं दुब्भिगंधपरिस्सावी तणुरप्पेसऽण्हाणिया । दुहा वाउवहो चेव तेण टुंति न चेइए ॥ तिणि वा कढए जाव थुइओ तिसिलोइया । ताव तत्थ अणुण्णाय कारणमि परेण वि (७२, ७३) इति व्यवहारे देवद्रव्यस्य तीर्थकरनिमित्तं कृते समवसरणे साधूनां कल्पते इत्यस्य च जिनगृहनिवसनिषेधस्थ स्तुतित्रयस्य च विचारः नवमोद्देशके। ( वर्षाप्रवेशादिविचार:) चउग्गुणीववेयं तु खेत्त होइ जहण्णय' । तेरसगुणमुकोसं दोण्ह मज्झमि मज्झिमग ॥ ६७ ॥ महई विहारभूमी विधारभूमी य लुलभवित्ती य । सुलभा वसही य जहिं जहण्णगं वासखेतं तु ॥ ६८ ॥ चिखल्ल १ पाण २ थंडिल ३ वसही ४ गोरस ५ जणाउले ६ वेज्जे । ओसह ८ निचया ९ हिवई १० पासंडा ११ भिक्ख १२ सज्झाए ॥ ६९॥ खेत्ताण अणुण्णवणा जेट्ठा मूलस्स सुद्धपडिवए । अहिगरणो माणो मा मणसंतावा न होहिंति ॥ ७१ ॥ जयणाए. समणाण अणुण्णवित्ता वसंति खेत्तवहिं । वासावासट्टाणं आसाढे सुद्धदसमीप ॥ ९३ ॥ संविग्गबहुलकाले एसा मेरा पुराउ आसी य । इयरबहुले उ संपइ पविसंति अणागयं चेव ॥ ९८ ॥ ॥ व्यवहारे दशमोद्देशके वर्षाप्रवेशादिविचारः ॥ अष्टविधा गणिसंपद् अट्टविहा गणिसंपय एकेका चउविवहा उ बोद्धव्वा । एसा खल बत्तीसा ते पुण ठाणा इमे हति ॥ २५२॥ आयार १ सुय २ सरीरे ३ वयणे ४ वायण ५ मई ६ पओगमई ७। एएसु संपया खलु अट्टमिगा ८ संगहपरिण्णा ॥ २५३ ॥ आयारसंपयाए संजमधुवजोगजुत्तया पढमा १।। बिइय असंपनगहिया २ अनिययवित्ती भवे तइया ३ ॥ २५५॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020506
Book TitleNishesh Siddhant Vichar Paryay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year1973
Total Pages181
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy