SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir निःशेषसिद्धान्तविचार--पर्याये आहावसी पहावसी मम चावि निरिक्खसि । लक्खिओ ते मए भावाजवं पत्थेस गहभा! ॥ १८५७ ॥ इउ गया इउ गया मग्गिज्जती न दीसई ।। अहमेयं विजाणाम अगडे छूढा अडोलिया ।। १२५. ।। सुकुमालग भद्दलया रत्ति हिंडणसीलया । भय ते नस्थि मंमूला दीहपट्ठाओ ते भय ॥ ११.९ ॥ सिक्खियव्यं मणुस्सेण अवि जाग्सि तारसं। पेच्छ मुद्धसिलोगेहिं जीविय परिक्खियं ॥ १९६० ॥ उज्जेगी जवराया, गद्दभिल्लो जुवराया, दीपिट्ठा प्रमच्चा, अडालिया भगिणी । भमरेहिं महुयरीहिं य सूतिजइ अप्पगो य गंधनं । पाउसकालकलंबो जति वि णिगूढो वर्णानगुजे ॥११४४॥ कत्थ व न जलइ अग्गी कत्थ व चंदा न पागडा होइ । कत्थ वरलक्खणधरा न पागडा होति सप्पुरिसा ।। १२४५५ '! वासावासे अइक्कते अट्टसु उउद्धिएसु मासेसु चारी भवइ । मासे मासेऽन्यत्र गममित्यर्थः । इति मासः । देवकुल चईयाई बंदित्ता घरचेइयाई वंदियबाई । तत्थ काह व जह सद्धि आयारी वंदओ जाइ । इयरे भिक्खं चेव हिंडंता बंदिहिति । तत्थ जइ फासुपणं आयरिओ निमंतिजइ तो घेत्तव्वं । एमेव य सन्नीण वि जिणाण पडिमासु पढमपट्टवणे । मा परवाई विग्धं करेज वाई अओ विसइ ।। २७९२ ।। चूर्णियथा-सावओ कोइ पढम जिणपडिमाए पइट्ठवण करेह । इति कल्पे प्रतिष्ठाविचार: । निस्सकडमनिस्सकडे वावि चेइए सव्वहिं थुई तिन्नि । वेलं व चेइयाणि य नाउँ एक्केक्किया बावि ॥ १८०४ ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020506
Book TitleNishesh Siddhant Vichar Paryay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year1973
Total Pages181
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy