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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir ४७ निशीथ - विचारा: समयखंडियस्स एगवीसुत्तरं ३१-१२१/१२४ च भागसयं अहिमासगयमाणंति कालमासे अहेगारा तत्थ वि उउमासेण, सेसा सीसस्स विकोचणट्टा संणिया । कम्ममासे सावनमासो उउमासो इत्येकार्थाः | परि संच्छर उक्कीसं बारसण्ड वरिसाणं । समपुन्ना आयरिया फगवइया वि विगति ॥ ६३१३ ॥ इत्यालोचनादिनानि । अत्थ ॥ ६६१४ ॥ कुणइ । गच्छे ॥ ६६९५ ॥ जीका विहितो ण भद्दओ जन्थ सारणा नत्थि । दंडे व ताडिती स भद्दओ सारणा जब सम्णमुवगयाणं जीवियववरोवणं नरो एवं सारणियाणं आयरिओ अचाइओ दुविन खलइ जो पंथे सो समे कहं खलइ । कज्जे विऽवज्जबज्जी से कहं सेवेज दप्पेणं ? ॥ ६६९८ ॥ अम्हे व एम्मा आसी वर्द्धति जत्थ सोयारा । इइ गारवल हुकरणं कहए न य सावए लज्जा ॥ ६६९९ ॥ इति निशीथविचारा: समर्थिताः । सुभाषितगाथा निशीथे सूईपयप्पमाणाणि पर छिद्दाणि पाससि । अपणो बिलमेत्ताणि पासंतो वि न पाससि || सिरिय मइमं तुस्से अइसिरिं नो उपत्थए । अतिसिरिमिच्छंतीय थेरीए विणासिओ अप्पा ॥ उत्तरगुणा इमे - पिंडस जा विसोहि समिइओ भावणा तवो दुविहो । पडमा अभिग्गा वि य उत्तरगुणमो वियाणाहि || ६५३४ | पञ्च वर्द्धति कौन्तेय ! सेव्यमानानि नित्यशः आलस्यं मैथुनं निद्रा क्षुधा क्रोधश्च पञ्चमः ॥ दर्शनविषपे सुलमा अमूढदिट्ठी सेणिय उवजूद थिरकरण साढो । बच्छलंमिय वहरा पभावगा अट्ठ पुण हुँति ॥ ३२ ॥ अइसेस इडि धम्महि कवि वाइ आयरिय खमग नेमित्ति । विजा राया गणसंभया य तित्थं पभाविति ॥ ३३ ॥ For Private And Personal Use Only —―
SR No.020506
Book TitleNishesh Siddhant Vichar Paryay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year1973
Total Pages181
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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