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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २ ) जो कि बड़ा ही योग्य पुरुष है, और बम्बई नगर में रहता है, तुम उसका ध्यान करो, जिस पुरुष को सीतलदास का ध्यान करने के लिये कहा गया, उसने सीतलदास का कभी भी दर्शन नहीं किया है. अब वह बिचारा उसका ध्यान कैसे कर सक्ता है, यदि उस समय उसको सीतलदास का चित्र दिखला कर कहा जावे कि अब तुम उसका ध्यान करो, तो उसी समय उसका चित्त से ध्यान कर सक्ता है, परन्तु केवल नाम मात्र से कार्य नहीं होसक्ता । यदि नाम के सुनने से ही कार्यसिद्ध होजाए तो आर्यस्कूल ( पाठशाला ) में अथवा ईसाईस्कूल में पढ़ने वाले लड़के अथवा कन्याओं के विवाह के समय एक दूसरे के चित्र न देखते । केवल लड़के लड़की का नाम ही पूछ लेते, परन्तु ऐसा नहीं करते हैं, जिससे विवाह करना होवे उनके चित्र आपस में अवश्य देख लेते हैं। अब ध्यान कीजिए कि लड़का लड़की तो एक प्रत्यक्ष वस्तु है, जब उनके चित्र विना कार्य नहीं होसक्ता,तो वह निराकार परमात्मा है उस का स्वरूप चित्र के विना अवलोकन करना अतीव दुःसाध्य है । और उसका ध्यान करना भी चित्र के विना कठिन है। यदि कोई यह कहे कि पुरुष तो स्वरूप वाला है, इसलिये इसका चित्र तो वन सक्ता है, परन्तु ईश्वर परमात्मा की तो कोई मूर्ति ही नहीं है, इसवास्ते उसकी मूर्ति नहीं होसक्ती, पुरुष मात्र को इस बात का ज्ञान होना चाहिये कि हमारे ढूंढिये भाई तो ऐसा कह ही नहीं सक्ते, क्योंकि वे भी हमारी तरह चौवीस अवतारों को साकार मानते हैं। बतलावें कि यह लोग मूर्तिपूजा से कैसे छूट सक्ते हैं। शेष जो अन्यमतानुयायी हैं For Private And Personal Use Only
SR No.020489
Book TitleMurtimandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhivijay
PublisherGeneral Book Depo
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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