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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५८. ) इसका आशय यह है कि कोश कारागार देवताओं के मन्दिरों को जो तोड़ने वाले हैं, अथवा वस्तुओं की चोरी करने वाले जो चोर हैं इन सबको राजा विना सोचविचार के मारडाले॥ __ और देखिए कि मनुस्मृति के नवम अध्याय के २८५ श्लोक में लिखा है। यथा (सङ्कमध्वजयष्टीनां प्रतिमानां च भेदकः) इस श्लोक में मनुजी ने राजा के लिए आदेश किया है कि नालों से उतरने के लिए जो पुल बने हुए होते हैं उनको ध्वजायष्टिं नाम तालाब में जो जल नापने की लकड़ी होती है उसको और देवताओं की प्रतिमा को तोड़ने वालों को राजा दण्ड देवे॥ देखिए इन स्थानों पर भी देवमन्दिर का नाम होने के कारण प्रत्यक्ष मालूम होता है कि मूर्तिपूजा का प्रचार मनुजी के समय में विद्यमान था । प्रत्युत मनुजी को भी यह पक्ष - 4218 Salt स्वीकार था। "आर्य-महाशय ! देवमन्दिर में हम 'विद्वान् का स्थान' ऐसा अर्थ लेते हैं। मन्त्री आपको उत्तर दिया गया है कि आप देव शब्द का अर्थ विद्वान नहीं कर सक्ते हैं, और आपने यह वाक्य 'विद्रांसो वै देवाः ' शतपथब्राह्मणभाग से लिया है, और इस प्रमाण से ही देवता का अर्थ विद्वान करते हैं परन्तु इस शतपथ ब्राह्मणभाग नाम ग्रन्थ की ६ कंडिका में मत्स्य अवतारादिका विस्तार से वर्णन किया गया है। यदि आप शतपथ ब्राह्मण के प्रमाण से ही देवता का अर्थ विद्वान करते हैं तो आपको छठी कंडिका को भी मानना पड़ेगा, जिसमें अवतारों For Private And Personal Use Only
SR No.020489
Book TitleMurtimandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhivijay
PublisherGeneral Book Depo
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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