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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सक्ता । इसीतरह हम तुमने भी ईश्वर का केवल नामही सुना है, परन्तु देखा नहीं, इसलिए ईश्वरमूर्ति के विना ईश्वर का ज्ञान कदापि नहीं होसक्ता । यदि आप कहेंगे कि मूर्ति बनाने वाले ने ईश्वर को कब और कहां देखा था तो आपका यह कहना भी ठीक नहीं, क्योंकि नकशे को बनाने वाले ने क्या सर्व देश शहर कसबे ग्राम समुद्र नदी इत्यादि देखे भाले होते हैं ? कदापि नहीं । जिस तरह नकशा बनानेवाले ने सर्व देश इत्यादि नहीं देखे होते परन्तु इसके बनाए हुए नकशे के देखने वालों को सर्व देश नगर इत्यादि का ज्ञान होजाता है, इस प्रकार मूर्ति में भी समझना चाहिए । यदि मूर्ति बनानेवाले ने ईश्वर को नहीं देखा है परन्तु इस मूर्ति के देखने से हमको ईश्वरका ज्ञान प्राप्त होता है। आर्य-क्यों साहिब ! जब शास्त्रों से ही ईश्वर का ज्ञान प्राप्त होसक्ता है तो फिर मूर्ति की क्या आवश्यकता है। मन्त्री-महाशयजी! आपका यह कहना भी व्यर्थ है। देखिये, एक आदमी को तो मुम्बइ के वृत्तान्त से ऐसे सावधान किया जाए कि इस नगर की अमुकद्वार तो पूर्व की तरफ और अमुकद्वार पश्चिम की तरफ है और अमुक गृह स्टेशन से अमुक दिशा में है इत्यादि २ और दूसरे मनुष्य को मुम्बई नगर का चित्र भी दिखाया जाए, और वृत्तान्त भी सुनाया जाए तो आप ही कथन करिए कि मुम्बई नगर का अतिज्ञान किस मनुष्य को हुआ। अवश्य कहना पड़ेगा कि समाचार सुनकर चित्र देखने वाले को अधिक ज्ञान हुआ। आर्य-क्यों जी! यदि आप पत्थर की मूर्ति को देखने से शुभ परिणाम का आना मानते हो तो इस के जड़ता के भाव For Private And Personal Use Only
SR No.020489
Book TitleMurtimandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhivijay
PublisherGeneral Book Depo
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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