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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कह सक्ते हो कि हम जड़ वस्तु को नहीं मानते । अच्छा मौलवी साहिब एक बात आप और बतलाएं कि आप लोग माला के मणके गिनते हो कि नहीं। मौलवी-हां जी जरूर। मन्त्री-माला के मणकों की जो विशेष संख्या नियत है इसमें जरूर कोई कारण है जो यही प्रतीत होता है कि अवश्य किसी न किसी बात की स्थापना है। कई लोग कहते हैं कि खुदा के नाम एक सौ एक हैं-इसलिये माला के मणके १०१ रक्खे गए हैं। अभिप्राय यह है कि कोई न कोई कारण विशेष संख्या नियत का अवश्य है । बस यह जो नियत कर लेना है इसी का नाम स्थापना है । बस जिसने स्थापना स्वीकार करली उसने मूर्ति अवश्य मानली, केवल आकार का भेद है। कोई किसी मूर्ति को मानता है परन्तु मूर्ति के विना निर्वाह किसी का भी नहीं हो सक्ता । इसलिए आप भी मूर्ति से पृथक कदापि नहिं हो सक्ते । यह तो केवल आपकी अज्ञानता है । जब आप लकड़ी के या पत्थर के टुकड़ों में परमात्मा के नामकी स्थापना मानते हो तो इस नाम वाले की स्थापना क्यों नहीं मानते। मोलवी-जबकि परमात्मा का आकार ही नहीं है तो इसकी मूर्ति कैसे बन सक्ती है। __मन्त्री -कुरानशरीफ में लिखा है कि मैंने पुरुष को अपने आकार पर उत्पन्न किया । अथवा जिसने पुरुष के आकार की पूजा की उसने परमात्मा के आकार की ही पूजा की। और इससे प्रत्यक्ष सिद्ध है. कि परमात्मा का आकार अवश्य है। कुरान की शिक्षा यह है कि खदा फरिस्तों की कतार के साथ For Private And Personal Use Only
SR No.020489
Book TitleMurtimandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhivijay
PublisherGeneral Book Depo
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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