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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३२ ) करके यह अभिमान हृदय कदापि न करिये कि प्रत्येक स्थान में हमारा आधिपस चल जाएगा, धर्म के लिए मरजाना कोई बड़ी बात नहीं ॥ . मन्त्री - वाह जी ! वाह ! शोक है । मौलवी साहिब तनक ध्यान तो दो, कि मैंने पूर्व क्या कहा और अब क्या कह रहा हूं । यद्यपि मैंने आपको बुरा भला नहीं कहा, केवल यही पूछा है कि क्या आप इस पत्रखण्ड पर अपना पाद स्थापित करसके हो ? जिस पर आप कपड़ों से बाहर होगये और बहुत क्रोध में आगए। अब तो आपही अपने मुख से जड़ वस्तु का सम्मान करने लगगए, यह क्या ? मौलवी - हमने कर जड़ मूर्तिका पूजन माना है ? ॥ मन्त्री - क्या पत्र और मसी जड़ वस्तु नहीं है ? मौलवी - हां हां ! जड़ नहीं तो और क्या हैं । मन्त्री -- मौलवी जी यदि ऐसा ही है तो पत्र और मसी आपस में एकत्रित होकर खुदा लिखा जाता है इस में पत्र और Hira fear और कोई तीसरी वस्तु नहीं है न तो इस में खुदा का हाथ है और न हि इस में खुदा का पाद है तो फिर आप को को कैसे आया ? ॥ For Private And Personal Use Only मौलवी --हां जी हां ! बस इस में परमात्मा का नाम प्रत्यक्ष लिखा हुआ है इस पर हम पाद कैसे स्थापित कर सक्ते हैं ॥ मन्त्री - जब आप पत्र और मसी के द्वारा लिखे हुए परमात्मा के नाम पर अपने प्राणों को बलिदान करने लगे हैं तो परमात्मा की मूर्ति पर क्यों बलिदान नहीं होते । और आप कैसे
SR No.020489
Book TitleMurtimandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhivijay
PublisherGeneral Book Depo
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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