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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्योतिषचमत्कार समीक्षायाः ॥ अधमकक्षा के विवाह ( हाटे ) प्रचलित ही हैं। जो चाहे सो कर सकता है ? मो शाप क्या चाहते हैं ? और कुण्डली मि. लाने का विशेष विचार भागे लिखा जायगा ॥ . (ज्यो० च० पू० ३९ पं०९ )-ज्योतिषी कर्मरेखा को भी मिटाने के लिये बुलाये जाते हैं। इन्हीं महाराज ने पृथ्वीराज को दो घण्टे तक मुहूर्त ढंढ़ते २ रोकदिया ॥ इत्यादि (समीक्षा)-जोशी जी ! डाक्टरसाहब को पाप कर्मरेखा मिटाने के लिये बुलाते हैं ? । वा किसी अन्यकार्य के लिये, क्योंकि आप के मत से अटलरेखा टल नहीं सकती । तो कहिये जिस की कर्मरेख में रोगी रहना लिखा है, या मृत्यु लिखी है, उस को डाक्टर का इलाज क्या कर सकेगा। विना कभरेखा के रोग हो नहीं सकता। तो कहो उस को उस के इलाज से कुछ लाभ होगा या हानि? । बस इसीप्रकार ज्योतिषियों को भी बलाया जाता है ॥ पाठक महाशय ! यदि किसी डाक्टर या हकीम के इलाज करने पर भी किमी रोगी को भाराम न हो, वा मर जाय तो इस कारण से कोई मनुष्य प्रायद का खण्डन नहीं कर सकता । इमीप्रकार पृथ्वीराज को मुहूर्त न मिलने के कारण दो घण्टे रोकने की वात श्राप की मच्ची भी हो तो इस से ज्योतिष का खगहन आप नहीं कर सकते । पृथ्वीराज के कपर अवश्य कोई खोटा ग्रह माया होगा । एक पृथ्वीराज नहीं, किन्तु सैकड़ों सहस्रों राजा महाराजाओं का मुहूर्त क. रने से अवश्य कल्याण हुआ है। (ज्यो० च० पृ० ४० )-वचपन में विवाह करने की रीति ज्योतिषियों ने चलाई । काशीनाथ महाराज लिख गये हैं कि दशवर्ष तक जो लड़की का व्याह न करे वह मरक में जाय । ऐसे बच्चों का व्याह वेद पुराणों में कहीं भी नहीं। वसिष्ठ जी लिखते हैं कि लड़की का व्याहु रजस्वला होने से तीनवर्ष पीछे होना चाहिये । मन जी का भी यही मत है। For Private And Personal Use Only
SR No.020489
Book TitleMurtimandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhivijay
PublisherGeneral Book Depo
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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