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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पञ्चमोऽध्यायः ॥ ६३ अस स्वामी इहि कहमिर्लाहि, परी हस्तअसरेख * ॥ रा० मा० वा० का० इसी प्रकार शीलनिधि राजा के यहां लड़की के रेख - त्यादि का विचार करके नारद जी ने कहा था । किजो इहि वरहि अमर सो होई । समरभूमि तेहि जीते न कोई ॥ इत्यादि इस प्रकार के अनेक इतिहास पुराणों में हैं । जिनसे ज्योतिष की प्राचीनता तथा अनेक प्रकार से विधि मि लाने की रीति भलीभांति मिट्ट होती है। इसीलिये ऐसे महान् पुरुषों को एकत्र करने के अर्थ स्वयम्बर कहीं २ करना पड़ता था । वैसे पुरुषों की कुण्डली ढूंढने में अधिक परिश्रम - 1 मझ कर स्वयम्बर में सब महानुभावों के एकत्र होजाने से उस कन्या के योग्य वर के साथ ठीक २ साम्य तथा विवाह हो 1 जाताथा । और माधारण लोगों में श्राजकल की भांति कुण्डली मिलाने की सरलरोति उस समय में भी प्रचलित थी । स्वयम्बर केवल राजा महाराजाओं के यहां कहीं २ किमी खास कारण से होते थे । अन्य लोगों में नहीं, अब रहा शकुन्तला और दुष्यन्त का विवाह सो इस का नाम गान्धर्वविवाह है । इस में विधि मिलाने की रीति अव भी नहीं है । . प्सरा की पुत्री होने के कारण शकुन्तला को करावमुनि ने किसी ब्राह्मण के पुत्र के साथ ठीक २ विधि मिला कर पू alक्त चारप्रकार के विवाहों में कोई भी ( कन्यादान ) न कर सका । इसी चिन्ता में विवाह का समय निकल गया । इस कारण राजा दुष्यन्त के साथ गान्धर्वविवाह हुआ। गा धर्वादि विवाह कोई आज कल भी कर लेवे तो उसे विधि मिलाने की कोई श्रावश्यकता नहीं । मो श्राप के देश में भी * हस्त रेख शब्द से सामुद्रिक से नारद का बताना सिद्ध होता है ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020489
Book TitleMurtimandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhivijay
PublisherGeneral Book Depo
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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