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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पञ्चमोऽध्यायः ॥ पूर्ण २५ (aita: ) - इस समय से नहीं, किन्तु पूर्वकाल से ही मुहूर्त्तादि सभी काव्यों में माने जाते हैं। मुहूर्तचिन्तामणि और शोध के अतिरिक्त आप ने अन्य ग्रन्थों का नाम क्या नहीं सुना? नारद हारीत वसिष्ठ, गर्गादि ऋषि मुनियों के मुहूर्त्त तो दूर रहे किन्तु ला श्रीपति, कालिदास जो आदि श्रावाय के ( मुहूर्त) ग्रन्थों को भी आप देख लेते तो शीघ्रबोध मुहूर्तचि न्तामणि आधुनिक ग्रन्थों से मुहूती का प्रारम्भ क्यों लिखते ॥ जोशी जी ! तथा पाठकगण ! ध्यान देवेंकि ज्योतिषशास्त्र ही नहीं किन्तु गृह्यसूत्र तथा आयुर्वेद भी इस बात की साक्षी देते हैं कि शुभाशुभ मुहूर्त मत्ययुग से विचारे जाते हैं । प्रायुर्वेदाचार्य महर्षि सुश्रुत जी लिखते हैं कि जिस समय वैद्य को बुनाने के निमित्त दूत आवे तो वैद्य को इतनी बातों का विचार करना श्रावश्यक है । दूतदर्शनसम्भाषा वेषाचेष्टितमेवच । ऋक्षंवेलातिथिश्चैव निमित्त 'शकुनोऽनिलः ॥ सुश्रु० सूत्रस्थान अ० २९ ॥ भाषा- दूत का रूप, वाणी, भेष, तथा चेष्टा और नक्षत्र तिथि समय लग्न पवन कैमा चलता है । शकुन इत्यादि विचारे ॥ आद्राऽश्लेषामघा मूल पूर्वा सुभरणीषच । चतुथ्यवानवम्यांवा पष्ठयां सन्धिदिनेषुच ॥ मध्यान्हेचार्द्धरात्रौवा सन्ध्ययोः कृत्तिकासुच ॥ सुश्रु० सूत्रस्थान अ० २९ । १६ ॥ १७ ॥ उक्त तिथि तथा नक्षत्रादि में वैद्य के पास प्रथम दूत जाय तो अशुभ हो। इससे स्पष्ट है कि भले बुरे मुहूर्त इनके समय में भी बतलाये जाते थे। और विवाह आदि सभी संस्कार सु For Private And Personal Use Only
SR No.020489
Book TitleMurtimandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhivijay
PublisherGeneral Book Depo
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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