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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७ ज्योतिषचमत्कार समीक्षाया ॥ देत्यान्दारयतेवलिंछलयते शत्रुक्षयंकुर्वते । पौलस्त्यंजयतेहलिंकलयते कारुण्यमातन्वतेम्लेच्छान्मूर्च्यतेदशाकृतिकृते कृष्णायतुभ्यन्नमः॥ बौद्धभगवान् ने करुणा यानी अस्मिाधर्म फैलाया। रहा ईसामसीह और महम्मद की मन्दिरों में मूर्ति रखना सोपाठक! हमारी सम्मति से तो डिपीमाहव एक नया मज़हर चला जाते तो स्वामी दयानन्दजी और केशवसेनचन्द्र से भी आप का नाम कम नहीं होता । केवल ज्योतिष का खरहन करने से आपकी मुराद पूर्ण न हो सकेगी। महाराजा नल युधिष्ठर शिव दधीचि और बड़े २ मुनियों तक की जव हिन्दूमन्दिरों में मूर्ति नहीं होती। किन्तु केवल अवतार तथा देवी देवताओं की मूर्तियां पूजी जाती हैं तव महम्मद और ईसा मादि मनुष्यों की मूर्तियां क्यों कर मन्दिरों में धरी मिलती है। नाम मात्रका कोई ( हरिभक्त) सनातनधर्म का मानने वाला यदि ऐसा काम करे तो हम न. हीं कह सक्ते। पर वैदिक हिन्दू नहीं कर सक्ता ॥ डिपटी साहब! आप ने लिखा है कि मैं वैष्णाय हूं तो प्राप बुद्धजी का अवतार फिर क्यों नहीं मानते। चारो सम्प्रदाय के श्री वैष्णव और स्मार्त सभी बौद्धावतार को मानते हैं। नया सम्प्र. दाय हरिभक्तों का कोई खड़ा कीजिये। दिल्ली के पांचों सवार पूरे हो जायंगे। श्रीरामानुज श्रीवल्लभाचार्य आदि की भांति वैष्णव लोग पांच आचार्य मानने लगेंगे ॥ (ज्योःच०प०३७५०९७)-इस वक्त तक तो फलित वाले ' केवल कुपहली का फल बताते थे । इम से कोई बडो हानि न थी ।अब तो इन का मन बढ गया भला घुरा मुहूर्त भी बतला. ने लगे इम समय रचे हुए ग्रन्थ मुहूर्त्तचिन्तामणि और काशी नाथ पद्धति हैं विमा ज्योतिषियों के पूछे विवाह भी नहीं हो सकता॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020489
Book TitleMurtimandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhivijay
PublisherGeneral Book Depo
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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