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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६ ) मन्त्री - प्रथम मैं आपको युक्ति से सिद्ध करके दिखलाता हूँ । लो सुनिए ! क्या आप खण्ड के बने हुए १ " हस्ती, अश्व, वृषभ" आदि खिलौने खाते हो या नहीं ? ढूंढिया - देखिए साहिब ! मैं साफ २ कह देता हूं कि हम खाते तो कदापि नहीं हैं, परन्तु जब से मूर्तिपूजा की विपदा हमारी ग्रीवा में चिमड़ने लगी- उस समय से तो हमको यही कहना पड़ता है कि हां ! खा लेते हैं | मन्त्री - वाह जी वाह ! ठीक मनुष्यों के भय से आप ने अपना मन्तव्य छोड़ दिया। इन बातों को जाने दो ज़रा आप यह तो बतलाएं कि माला के कितने मणके होते हैं ॥ ढूंढिया - (१०८) एकसौ आठ मन्त्री - न्यूनाधिक क्यों नहीं होते ? एकसौ आठ ही की संख्या क्यों नियत है ? ढूंढिया - मुझे मालूम नहीं, इसलिये मैं आपको अपने गुरु जी से पूछकर निवेदन कर सक्तः हूं ॥ १- नोट - जिस मनुष्य को इसमें शंका हो वह किसी ढूंढिये भाई को अपने सन्मुख खण्ड का खिलौना खिलावे, वह कदापि 'नहीं खाएगा। यही कारण है कि वस्तुतः मूर्त्तिपूजन मानते हैं । केवल ईर्षा में आकर हठ में पडकर कुछ परमार्थ का ख्याल नहीं करते | For Private And Personal Use Only
SR No.020489
Book TitleMurtimandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhivijay
PublisherGeneral Book Depo
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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