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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५ ) आंखों और कानों में चार अंगुलियों का अन्तर है आपने मन्त्री से केवल सुना ही है परन्तु अवलोकन नहीं किया है कि सत्य है यह लोग मूर्तिपूजन को नहीं मानते । यदि देखलें तो आपको स्वयं ही मालूम होजाए, कि यह लोग क्या २ करते हैं । मैं आपको अच्छी तरह से दिखला सक्ता हूं कि यह लोग मूर्तिपूजन से कदापि दूर नहीं होसक्ते । राजा ने कहा कि हां ! बड़े हर्ष की बात है कि यदि आप युक्ति प्रमाण से सिद्ध करके दिखलाओगे कि वस्तुतः ही यह उक्त धर्मावलम्बी मूर्तिपूजन को मानते हैं, तो मैं तत्क्षण मूर्तिपूजन करने लग जाऊँगा, और मान लूंगा । मूर्तिपूजक मन्त्री ने कहा कि हे स्वामिन् ! बहुत अच्छा, तीसरे दिन आप एक सभा लगाएं । और 'ढूंढिये' 'सिक्ख' 'यवन' और 'आर्य्य' इन धर्मावलम्बिओं के चार सुयोग्य पुरुषों को बुलवाएं। राजा ने यह बात स्वीकार करली और नियत दिन आने पर सभा लगाई गई और सर्वमतानुयायी सज्जनगण एकत्रित होगये, और वे चार आदमी भी बुलाए गए। इस के अनन्तर राजा ने मूर्तिपूजक मन्त्री को आज्ञा दी, कि अब आप इन चार आदमियों से प्रश्न उत्तर कीजिए और मूर्त्तिपूजा सिद्ध दरिए । मन्त्री ढूंढिये भाई के सन्मुख हुए और कहा, भ्रातृगण ! क्या आप मूर्तिपूजा को नहीं मानते हैं ? ढूंढिया नहीं इम जड़ मूर्ति को नहीं मानते, क्योंकि मूर्तिपूजा न तो युद्ध में मिद्ध होती है, और का ही हमारे सूत्रों में तीर्थङ्कर महाराज का मूर्तिपूजा के विषय में कथन है ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020489
Book TitleMurtimandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhivijay
PublisherGeneral Book Depo
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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