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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org C ज्योतिषचमत्कार समीक्षायाः पाठकगण ! ज्यातिषशास्त्र की उत्पत्ति के विषय में पश्चिमीय विद्वान् भी यही मानते हैं कि, यज्ञादि के कालज्ञान की आवश्यकता के निमित्त इस शास्त्र की रचना हुई । जैसे कि यूरोप के डाक्टर टीवो का कथन है कि वैदिक यज्ञों के समय का ज्ञान निश्चय करने के लिये तारामण्डल के ज्ञान की श्रावश्यकता हुई । इस से ज्योतिषशास्त्र की उत्पत्ति हुई इत्यादि । और हमारे शास्त्रों में लिखा है कि, भगवान् प्रजापति ने वेद वेदाङ्गों को रचा। शु०यजुर्वेद के ११ वें अध्याय को २ कडिका में अग्नि चयन यज्ञ में विनियुक्त मन्त्रों द्वारा सिंहावलोकित न्याय से कुछ २ अंकशास्त्र का वर्णन है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यथा - " एका च दश च दश च शतं च शतं च सहस्रं च सहस्रं चायुतं चायुतं च नियुतं च नियुतं च प्रयुतं चार्बुदं च न्यर्बुदं च । इत्यादि” प्रश्न, यह तो केवल गणित सिद्ध हुआ फलित की इस में कुछ भी चर्चा नहीं, * उत्तर आप के मत से तो गणित तथा फलित दोनों ही स न हो वेंगे क्योंकि भूगोलादि का ज्ञान, ग्रहण प्रादि का गणित इस से कुछ नहीं होता और फलादेश भी इस ऋचा से नहीं जाना जाता, स्मरण रक्खो कि हमारे मत से दोनों ही विषय फलित व गणित इसी से सिद्ध होते हैं । कारण कि मूल संहिता में वेद की सूक्ष्म मूल वातें होती हैं। विस्तार पूर्वक वही विषय वेदाङ्गादि अन्य शास्त्रों में वर्णित होता है। इसी प्रकार इस शास्त्र का मूल अंकों में है । सो अंकों का वर्णन यजुर्वेद में प्रागया और भूगोल खगोल तथा ग्रहगणित वेदाङ्ग शिरोमणि ज्योतिष में मिलेगा और इसीप्रकार फलादेश भी उसी शास्त्र में होगा, सो ठीक है सिद्धान्त ग्रन्थों में गणित ग्रहस्पष्टादि संहिता तथा जासक ग्रन्थों में फलित स्पष्ट है, इम में जो शंका करे वह अल्पज्ञ है। ग्रहों की पूजा शान्ति आदि For Private And Personal Use Only
SR No.020489
Book TitleMurtimandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhivijay
PublisherGeneral Book Depo
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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