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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगणेशायनमः ॥ ॥ ज्योतिष चमत्कार समीक्षो॥ अचिन्त्याव्यक्तरूपाय निर्गुणायगुणात्मने समस्तजगदाधार मूर्तयेब्रह्मणेनमः ॥ १॥ श्रीकृष्णा चन्द्र प्रानन्दकन्द भगवान् श्यामसुन्दर को नमः स्क र करने के पश्चात गाज मैं एक ऐसे विषय की पुस्तक जितने को बैठा हूं कि जिस से मनुष्य मात्र का सम्बन्ध है, दिन रात घड़ी पल विपल और माम पक्ष ऋतु अघन वर्षे युग चतुर्युग मन्वन्तर कल्प इत्यादि जिस विद्या से जाने जाते हैं। पूर्व तथा वर्तमान और परजन्म का वृत्तान्त जिम से विदित होता है। वैदिक धर्मावलम्बी लोगों का क्षणमात्र भी जिम विद्या के विना काम नहीं चलता, वैदिक यज्ञ कर्मादिक के काल का ज्ञान जिस कानविधान शास्त्र से होता है। और वैदिक संस्कार, नित्य नैमिक्तिक कर्म तथा पर्वकाल पुण्यकाल इत्यादि का निश्चय जिस अंकशास्त्र से होता है। जिस विद्या. से मनुष्यों के जन्म का हाल जाना जाता है, जिस विद्या से स्वर्ग भूमि अन्तरिक्ष के उत्पातादि का ज्ञान, ग्रहयुद्ध, चन्द्र सय्यं ग्रहणा, समय के परिवर्तन का ज्ञान प्राप्त होता है। और घाल्यावस्था से आज पर्यन्त मैं जिस विद्या की खोज में लगा हं। जिस शास्त्र के अनेक ग्रन्थ स्वयं पढ़े और पढाये भी हैं पञ्चाङ्ग की गणना ग्रहण गणाना ग्रहस्पष्टगणाना इत्यादि जिस गणित विद्या में रातदिन लगा रहता हूं। जिस विद्या को अपनी पुस्तैनी (जायदाद ) रियासत मानता हूं। आज उनी विद्या की सत्यता के विषय की और उसी शास्त्र के तत्त्व की उसी के मण्डन विषय को पुस्तक लिखने को बैठा हूं। आज का दिन धन्य है परमात्मा इस कार्य को निर्विघ्नता से पूर्ण करै । For Private And Personal Use Only
SR No.020489
Book TitleMurtimandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhivijay
PublisherGeneral Book Depo
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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