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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुंबई के जैन मन्दिर २६३ ___ भद्रावल निवासी श्री बाबुलाल छगनलाल शाह के सुपुत्र श्री प्रवीणभाईने जिनालय निर्माण में मुख्य दाता के रुप में लाभ लिया हैं। जिनालय बनाने के लिये प्लोट नेकदिल श्री अली अहमदभाई कचरा के, मातुश्री नेनाबाई पोरबंदर वाला खोजा परिवार के पुत्र श्रीयुत अकबरभाई, उनकी धर्मपत्नी श्रीमती दौलतबानु, सुपुत्रो निसारभाई, इम्तियाझभाई, झरीरभाईने उदारता से बिना मूल्य बिना किसी शर्त से भेट में दिया हैं। इस जिनालय के निर्माण का अनुभवपूर्ण मार्गदर्शन सरल स्वभावी कमलादेवी तथा डॉ. चोथमलजी वालचन्द जैन नोवीवाला (हाल शिवगंज) परिवार के कर्मनिष्ठ सुपुत्रो श्री रमेशभाई, श्री किशोरभाई, श्री प्रवीणभाई की ओर से मिला हैं। शासन सम्राट श्री नेमिसूरीश्वरजी म. के समुदाय के आचार्य श्री विजय चन्द्रोदय सूरीश्वरजी म., आ. श्री विजय अशोकचन्द्रसूरीश्वरजी म., आ. श्री विजय सोमचन्द्रसूरीश्वरजी म. एवं अचलगच्छ समुदाय के आ. श्री कलाप्रभसागरसूरीश्वरजी म. आदि विशाल साधु-साध्वीजी भगवंतो की पावन निश्रा में वि.सं. २०५४ का मगसर सुदि ७, शनिवार, ता. ६-१२-९७ को प्रतिष्ठा धामधूम से हुई थी। मुख्य गर्भ द्वार का लाभ श्री डॉ. चोथमलजी वालचन्दजी श्री सीमन्धर स्वामी जैन देरासर ट्रस्ट - वरली वालोने लिया हैं । जिनालय में मूलनायक श्री आदिनाथ प्रभु श्री कदंबगिरी तीर्थ से लाये हुए हैं। ___मूल गंभारे में श्री अमीझरा आदिनाथ भगवान तथा आजू बाजू में श्री सीमंधर स्वामी एवं श्री अनंतनाथ प्रभु की पाषाण की ३ प्रतिमाजी, रंग मण्डप में पाषाण के श्री मुनिसुव्रत स्वामी, श्री महावीर स्वामी तथा श्री गौतमस्वामी एवं शासन सम्राट् श्री नेमिसूरीश्वरजी म. की प्रतिमाजी बिराजमान है। जिनालय के प्रवेशद्वार के बाहर की ओर श्री पुंडरीक स्वामी एवं गोमुख यक्ष, चक्रेश्वरी देवी सुशोभित हैं। भूमि गृह के मुख्य दाता एवं भोयरे में मूलनायक श्री आशापूरण पार्श्वनाथ भगवान, श्री पुंडरीक स्वामी एवं रायण पगला का आदेश भी श्री प्रवीणभाईने ही लिया हैं। भोयरे में श्री आशापूरण पार्श्वनाथ प्रभु की एक प्रतिमाजी, पंचधातु की ५ प्रतिमाजी, सिद्धचक्रजी-३, विसस्थानक-१, अष्टमंगल-१ तथा बाहर की ओर श्री अंबिकादेवी, श्री पद्मावती देवी, श्री महालक्ष्मी देवी, श्री मणिभद्रवीर बिराजमान हैं। जिनालय के दिवारो में बाहर की ओर की ओर पाषाण से निर्मित ३ मंगलमूर्ति भी बिराजमान है। यहाँ जैन पाठशाला की व्यवस्था हैं। For Private and Personal Use Only
SR No.020486
Book TitleMumbai Ke Jain Mandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal M Jain
PublisherGyan Pracharak Mandal
Publication Year1999
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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