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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३६ मुंबई के जैन मन्दिर सागरसूरीश्वरजी म. की शुभ निश्रा में श्री मुनिसुव्रत स्वामी जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ की स्थापना हुई थी। उस वक्त गृह जिनालय निर्माण करके उसमें श्री मुनिसुव्रत स्वामी की प्रतिमाजी स्थापित की गई थी। बाद में परम पूज्य आ. श्री विजय रामचंद्रसूरीश्वरजी म. के समुदाय के आचार्य श्री महोदयसूरीश्वरजी म., तपोमूर्ति आ. श्री विजय राजतिलकसूरीश्वरजी म. आदि की पावन निश्रा में वि. सं. २०५० का माह सुदि -१२, बुधवार को श्रीपालनगर में अंजनशलाका की हुई प्रतिमाजी की स्थापना वि. सं. २०५० का माह वदि-२, ता. २८-२-९४ को हुई थी। संघवी श्री सोहनराज रुपाजी ट्रस्ट निर्मित वर्तमान जैन देरासर में पाषाण के मूलनायक श्री आदिनाथ प्रभु, श्री पार्श्वनाथ प्रभु, श्री मुनिसुव्रतस्वामी एवं श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ प्रभु की ४ प्रतिमाजी पंचधातु की ५ प्रतिमाजी, सिद्धचक्रजी - २, अष्टमंगल - १ बिराजमान हैं । यहाँ कायमी आयंबिल शाला, श्री मुनिसुव्रत स्वामी महिला मंडल, श्री आदि जिन भक्ति मंडल की व्यवस्था हैं। (३५५) श्री वासुपूज्यस्वामी भगवान शिखरबंदी जिनालय आदिनाथ को. ओ. सोसायटी, अशरिश बिल्डींग के सामने, हनुमाननगर, अमृतनगर ____घाटकोपर (प.), मुंबई - ४०० ०८६. टेलिफोन नं.-५१७ २५ १४ - हसमुखभाई विशेष :- इस जिनालय के निर्माणकर्ता मोटा खुंटवडा निवासी दोशी कमलशी डायाभाई सह परिवार हैं। परम पूज्य आचार्य भगवन्त विजय भुवनभानुसूरीश्वरजी म. के समुदाय के आ. विजय हेमचन्द्रसूरीश्वरजी म. की शुभ प्रेरणा से वि. सं. २०४९ का चैत्र वदि ६ को इस जिनालय की स्थापना हुई थी। यहाँ पाषाण की ९ प्रतिमाजी, पंचधातु की २ प्रतिमाजी, सिद्धचक्रजी - २, अष्टमंगल - १ तथा यक्ष - यक्षिणी, मणिभद्रवीर तथा गौतमस्वामी की प्रतिमाजी बिराजमान हैं। श्री अमीझरा वासुपूज्य सामायिक मंडल की व्यवस्था हैं। नीचे उपासरा उपर के भाग में जिनालय शोभायमान हैं। (३५६) श्री रत्नचिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान गृह मन्दिर जीवदया लेन, घाटकोपर (प.), मुंबई - ४०० ०८६. टेलिफोन नं.-५१० ३१ ९१ - धीरजभाई मेहता विशेष :- श्री रत्नचिन्तामणि श्वेताम्बर मूर्तिपूजक तपगच्छ जैन संघ द्वारा संस्थापित तथा For Private and Personal Use Only
SR No.020486
Book TitleMumbai Ke Jain Mandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal M Jain
PublisherGyan Pracharak Mandal
Publication Year1999
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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