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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुंबई के जैन मन्दिर २३१ बादमें शिखरबद्ध महा जिनालय के लिये वि.सं. २०१६ में ही श्री संघने नवरोजी लेन के राजमार्ग पर विशाल भूमिखण्ड को खरीद लिया । वि.सं. २०१९ के चातुर्मास में पू.आ.भ. श्री विजय धर्मसूरीश्वरजी म.सा. के सदुपदेश से महाजिनालय के विशाल भूमिखण्ड को देवद्रव्य से मुक्त करने के लिये रुपया एक लाख का साधारण फंड हुआ । चार्तुमास के बाद वि.सं. २०२० में भावी महाजिनालय के मूलनायक श्री मुनिसुव्रत स्वामीजी का अंजनशलाका और प्रतिष्ठा का आदेश पू. आचार्य भगवंत की निश्रामें सवाईलाल केशवलाल घोघावालोने उस समयके रु. १,११,१११.०० में लिया था । वि.सं. २०२२-२३ में श्री वर्धमान तप आयंबिल खाता की स्थापना हुई। वि.सं. २०२४ में प.पू. आ.भ. श्री विजय धर्मसूरीश्वरजी म.सा. की पुण्य प्रभावी निश्रामें श्रावण सुदि ७ के शुभ दिनमें नूतन महाजिनालय का खनन विधि और श्रावण वदि १ के दिन आपकी निश्रा में शिलारोपण विधि हुई । वि.सं. २०२५-२६ के पू. आचार्य भगवंत श्री धर्मसूरीश्वरजी म.सा. के चातुर्मासोमें जिनालय कार्य तीव्रगतिसे बढता रहा। उपधान की आराधना और श्री संघ का पंतनगर जिनालय का निर्माण और प्रतिष्ठा हुई। _ वि.सं. २०२६ के चातुर्मास में पू. आचार्य भगवंत के मार्गदर्शनानुसार मूलनायक श्री मुनिसुव्रतस्वामी की प्रतिमा का निर्माण पूजा के वस्त्रो में सज्ज जयपुरके कुशल कलाकारो के द्वारा अखण्ड धूप-दीप के वातावरणमें घाटकोपर के उसी स्थान में विधि पूर्वक किया गया। मूर्ति के पाषाण जो मकराणा से आया था, उसीकी भी भव्य स्वागत यात्रा निकाली गई थी। महाप्रासाद का निर्माण कार्य पूर्ण होनेपर वि.सं. २०२७ के जेठ सुदि २ बुधवार ता. २७-५-७१ के श्रेष्ठ मुहूर्त में जिनालय का भव्य अंजनशलाका - प्रतिष्ठा महोत्सव पूज्यपाद आचार्य भगवंत श्री विजय प्रतापसूरीश्वरजी म.सा. और पूज्यपाद आचार्य भगवंत श्री विजय धर्मसूरीश्वरजी म.सा. की प्रभावक निश्रामें बडे ही ठाठ माठ से हुआ था । ग्यारह ग्यारह दिन तक सुबह -शाम दो टंक हजारो भाविको के लिये साधार्मिक वात्सल्य चालु रहा था, आज से २७ वर्ष पहले बीस लाख से अधिक खर्च से इस महाप्रासाद का निर्माण हुआ था. इस खर्च में घाटकोपर के अतिरिक्त किसी का भी हिस्सा नही था। जिनालय के मुख्य गंभारे में मूलनायक श्री मुनिसुव्रत स्वामीजी श्याम वर्णीय ३५" की, परिकर के साथ ७१" की भव्य प्रतिमाजी प्रतिष्ठित की गई है। विशाल भूमिगृह के गंभारे में श्री केशरीया आदिनाथ की ६१” की श्याम प्रतिमा बिराजमान है। उनके एक बाजू श्री सुमतिनाथजी ४१" और दूसरी बाजू में श्री सीमन्धर स्वामीजी ४१' बिराजमान हैं। जब हम जिनालय के दूसरी मंजिल पर मेघनाद मंडप में जाते है तो वहां गंभारे में मूलतान से प्राप्त प्राचीन श्री जीरावला पार्श्वनाथ की प्रतिमाजी परिकर के साथ बिराजमान है । जब हम तीसरी मंजील पर जाते हैं तो मध्य शिखर के गंभारेमें श्री मुनिसुव्रत स्वामीजी की २१" (परिकर के साथ ४१")और दूसरे शिखर में श्री मंगल पार्श्वनाथजी एवं तीसरे शिखर में श्री कल्याण पार्श्वनाथजी बिराजमान है। जिनालय में कुल मिलाकर आरसकी ४६ प्रतिमाजी, पंचधातुकी २१ प्रतिमाजी के अलावा सारे मन्दिरमें उपर नीचे अनेक तीर्थो के और देवी-देवताओ के रंगरंगीले कांच पर व आरस पर बनाये गये अति सुन्दर पटोका दर्शन होता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020486
Book TitleMumbai Ke Jain Mandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal M Jain
PublisherGyan Pracharak Mandal
Publication Year1999
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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