SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 311
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुंबई के जैन मन्दिर २२१ चेम्बुर चेम्बुर तीर्थ (मुंबई का शत्रुजय) (३४७) श्री ऋषभदेव भगवान भव्य शिखर बंदी महाजिनालय श्री आदीश्वर दादा जैन मन्दिर चौक, दसवा रास्ता, रामकृष्ण चेम्बुरकर मार्ग, चेम्बुर, मुंबई - ४०० ०७१. टेलिफोन नं.-(ओ.) ५२८ ६८ ०२, ५२८ ०२ ०१ केशवजीभाई - (ओ.) ५२२ २५६६, ५५५ ९६ ६६, घर - ५२२ ८४ १९, चंपालालजी - (ओ.) ५२८ २२ २०, ५२८ ८४ ७४, घर - ५२२ २१ ५४ विशेष :- मुंबई महानगर और उपनगरो की जैन जनता ने जिसको ‘लघु शत्रुजय' की उपमा देकर गौरव किया हैं ऐसे चेम्बुर तीर्थ के स्वप्न द्रष्टा, प्रबल प्रेरणा दाता और प्रणेता हैं मुंबई महानगर और उपनगरो के जैन संघो के अजोड उपकारी, जैन शासन के महाप्रभावक, युगदिवाकर पूज्यपाद आचार्य भगवंत श्री विजय धर्मसूरीश्वरजी महाराज साहेब । चेम्बुर जैसे उपनगर में, जहाँ एक भी जैन मन्दिर नहीं था, वहाँ ऐसे देव विमान जैसे विशाल, भव्य, रमणीय और मनमोहक मन्दिर के निर्माण से मुंबई महानगर की रोनक में और चार चान्द लग गये हैं। चेम्बुर का यही एक मात्र महाजिनालय, आकाशगामी उत्तुंग कला कोरणी युक्त तीन भव्य शिखर, त्रि चौकी, शणगार चौकी, विशाल रंग मंडप, भव्य घुम्मट, सामरण बद्ध दो पार्श्वचौकी, तीन भव्य गर्भगृह, विस्तृत भूमिगृह, विशाल परिसर इत्यादि शिल्प शास्त्रानुसारी जिन प्रासाद के सभी अंगो पांगो से युक्त महाप्रासाद, सारे चेम्बुर उपनगर का आभूषण होते हुए मुंबई महानगर का शणगार हैं, इसी लिए आज लोग उनको महानगर का मध्यवर्ती तीर्थधाम कहते हैं। चेम्बुर तीर्थ का यह संपूर्ण विशाल भूमि खण्ड, वि. सं. १९९८, ईसवी सन १९४२ में जामनगर निवासी प्रभु भक्ति परायण वीशा ओसवाल ज्ञातीय तपागच्छीय जैन श्रावक श्रेष्ठिवर्य श्री कपूरचन्द संघराज ने चेम्बुर में अधिष्ठायक शासन देव द्वारा स्वप्न सूचित श्री बावन जिनालय - महाप्रासाद के निर्माण के लिये सरकार के पास से खरीद कर लिया था और मूलनायक श्री ऋषभदेव भगवान ५१" आदि जिनबिंबो का निर्माण अपनी संपूर्ण निगाह में विधि विधान पूर्वक जयपुर के कुशल मूर्तिकलाकारो के पास अपने खर्च से कराया था, किन्तु भवितव्यता के कारण जिनप्रासाद के कार्य का प्रारंभ होने के पहले ही श्री कपूरचन्द शेठ का स्वर्गवास हो गया। बाद में वि. सं. २००७ में पोष वदि ५ के शुभदिन भायखला सेठ मोतीशा जिनालय तीर्थ में ५०,००० की विराट जनमैदनी के बीच श्री गोडीजी विजय देवसूरि जैन संघ की तरफ से श्री उपधान For Private and Personal Use Only
SR No.020486
Book TitleMumbai Ke Jain Mandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal M Jain
PublisherGyan Pracharak Mandal
Publication Year1999
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy