SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 304
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१४ मुंबई के जैन मन्दिर शिवडी- वडाला श्री आदिनाथ भगवान गृह मन्दिर प्लोट नं. ४०, उपेन्द्र बिल्डिंग, तीसरा माला, आगाशी में किंग्ससर्कल के नजदीक, शिवडी-वडाला रोड, नं.१४, __माटुंगा (पूर्व), मुंबई-४०० ०१९. टेलिफोन नं.-४०९६०८४ - विनोदभाई विशेष :- सुप्रसिद्ध भांखरीया चाय के मालिक श्रीमान मोहनलाल नगीनदास भाखरीया के परिवारवाले श्री विनोदभाई वगैरह इस गृहमन्दिरजी का संचालन कर रहे है। इनके परिवारवालो ने ही इसकी स्थापना की थी। परम पूज्य आचार्य भगवन्त श्री कैलाशसागर सूरीश्वरजी म. साहेब आदि मुनि भगवंतोकी पावन निश्रा में वि.सं. २०२१ का आसो सुदि १०, मंगलवार को चल प्रतिष्ठा हुई थी। यहाँ मूलनायक श्री आदिनाथ तथा श्री शान्तिनाथ प्रभु की पंच धातु की २ प्रतिमाजी, श्री पार्श्वनाथ प्रभु की आरस की एक प्रतिमाजी एवं श्री महावीर प्रभु की सुखड की १ प्रतिमाजी के अलावा श्री पद्मावती माताजी एवं आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म. साहेबजी की एक प्रतिमाजी बिराजमान है। सायन - शिव (३३७) श्री धर्मनाथ भगवान गृह मन्दिर मोतीबाग, बी. लास्ट फ्लोर, आगाशी में, स्किम ६, क्रमांक -२२, ९६ सायन रोड, मुम्बई - ४०० ०२२. टेलिफोन :- ४०९ ४७ ८८ - देवेन्द्रभाई, ४०९ ७२ ५० - कनुभाई विशेष :- इस मन्दिरजी के संस्थापक मुम्बई के सुप्रसिद्ध धर्मप्रेमी शेठ कीकाभाई प्रेमचन्द थे। आज से लगभग ६० वर्ष पहले इस मन्दिरजी की स्थापना हुई थी। उसके बाद रवीन्द्र मलबारी इसके व्यवस्थापक रहे । अब मोतीबाग जैन संघ संचालन कर रहे है। यहाँ मूलनायक के साथ पंच धातु की ८ प्रतिमाजी, आजूबाजू में दोनो आरस की प्रतिमाजी के अलावा सिद्धचक्रजी -१, अष्ट मंगल -१, चान्दी की १ चौविशी चौविस प्रभुजी की तथा चान्दी के ही ३ प्रतिमाजी तथा ६ अष्टमंगल शोभायमान है। श्री मुनिसुव्रत स्वामी एवं श्री महावीर स्वामी की आरस की प्रतिमाजी की प्रतिष्ठा परम पूज्य आ. For Private and Personal Use Only
SR No.020486
Book TitleMumbai Ke Jain Mandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal M Jain
PublisherGyan Pracharak Mandal
Publication Year1999
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy