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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुंबई के जैन मन्दिर इस तीर्थधाम के संस्थापक विश्व के प्रथम जैन म्युझियम - पालिताणा के प्रणेता पूज्यपाद आचार्य भगवन्त श्रीमद् विजय विशालसेन सूरीश्वरजी म. साहेब तथा उनके शिष्यरत्न पू. आ. श्री राजशेखर सूरीश्वरजी म. की प्रबल प्रेरणा कृपा और प्राणवान पुरुषार्थ तथा आपके भक्तजनों के श्रेष्ठ योगदान से स्व. पूज्य गुरु भगवन्त पूज्यपाद आचार्य देव श्रीमद् विजय अमृत सूरीश्वरजी म. तथा प्रतिभा सम्पन्न पू. आचार्य देव श्रीमद् विजय धर्म धुरंधर सूरीश्वरजी म. साहेब की अंतर की भावना अनुसार श्री पोपटलाल पानाचन्द कोठारी (पालनपुर) जैन देरासर, श्री अमृतसूरिजी जैन उपाश्रय, श्री चीमनलाल कीलाचन्द शाह पाटणवाला जैन उपाश्रय, श्रीमती मोतीबेन वाडीलाल शाह (लुणवा-मंडाली) संघ भक्ति गृह, श्री जयंतिलाल हीराचन्द शाह (घोलेरा) मंगल घर, श्री ओंकरवाला व्याख्यान हॉल, श्री प्रेमचन्द वाडीलाल शाह (सायला) आराधना गृह का निर्माण हुआ है । १८१ मूलनायक प्रतिमाजी प्रगट होने का इतिहास :- परम पूज्य आ. श्री विशालसेन सूरीश्वरजी म. की पावन निश्रा में उपासरे के खुदाई का काम चल रहा था, अचानक एक मजदुर का खुदाई हथियार किसी ठोस वस्तु से टकरा गया, उस मराठी मजदुर को शंका हुई और महाराज के पास आकर सारी घटना सुना दी, जब महाराज वहाँ पहुँचे तो उन्होंने अपने हाथो से उपर की मिट्टी को दूर हटाया । मिट्टी ही सर्वप्रथम प्रतिमाजी का घुटना गुरुदेव के हाथो में आया। गुरुदेव को ऐसी पुरी खात्री हो गई कि जरुर यह जैन प्रतिमाजी ही होनी चाहिये। धीरे धीरे पुरी प्रतिमाजी को बाहर निकाला गया, उस समय, चमत्कारिक शान्त सुधारस वाहिनी ऐसी २२०० वर्ष प्राचीन संप्रति कालिन कोई अद्भुत पाषाण से निर्मित प्रतिमा देखते ही मन मोहित हो गया । उनके दोनो हाथो से अमीझरण हो रहा था, अत: इस चमत्कारिक प्रतिमाजी का नाम श्री पीयूषपाणि पार्श्वनाथ दिया गया । प्रतिमाजी को पालीताणा लाकर जैन म्यूझियम की अन्य ऐतिहासिक वस्तुओं के साथ गोदाम में रखा गया । सन् १९९९ मे पालीताणा के जैन म्यूझियमका उद्घाटन गुजरात के मुख्यमंत्री श्री चिमनभाई पटेल के हस्तक हुआ था । अन्य वस्तुओं के साथ इस प्रतिमाजी को भी दर्शनीय के रुप में रखा गया । गुरुदेव जब वापस पीयूषधाम बिराजमान थे तब गुरुदेवने प्रतिमाजी को वापस मंगवा कर पीयूषपाणि धाम के उपाश्रय में रखवादी । वरसावा गाँव में किसी भी प्रकार का मन्दिर न होने से, घर घर मंगल के गीत गुंजने लगे, छोटेबड़े सभी के दिल डोलने लगे। सुबह-शाम बालक वर्ग दर्शन को आने लगे, सभी को नवकार मंत्र कंठस्थ हो गया । दिन दिन प्रभुजी का प्रभाव दिखाई देने लगा । दरीया का किनारा, उत्तुंग पर्वतो के बीच में शान्त शीतल सुरम्य स्थल । परन्तु यहाँ टेकरी पर मंदिर का निर्माण करना अंधेरे में मोती पिरोना जैसा काम । क्योंकि कोई भी वाहन उपर आ नहीं सकता। बिल्कुल रास्ते का अभाव ! रास्ते के लिये खुब कोशीशे की, खर्चा भी किया, उसमे सफलता न मिलने से सभी थक गये । अतः गुरुदेव ने श्री पीयूषपाणि पार्श्वनाथ प्रभु को विनंती की 'हवे अमे सौ तारा भरोसे छीए' । For Private and Personal Use Only चैत्र सुदि १ गुडी पडवा के दिन, मोटर तो क्या, किन्तु १० टन वजन की ट्रक भी उपर चढ सके ऐसा मजे का रास्ता तैयार हो गया। सभी सर झुकाकर दादा का उपकार मानने लगे ।
SR No.020486
Book TitleMumbai Ke Jain Mandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal M Jain
PublisherGyan Pracharak Mandal
Publication Year1999
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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