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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुंबई के जैन मन्दिर भगवंत श्री विजय धर्मसूरीश्वरजी म. सा. की प्रेरणा व मार्गदर्शन से मुंबई महानगर के पश्चिम विभाग के उपनगरो में सबसे बडा, विशाल, भव्य, रमणीय और मनमोहक इस चतुर्विंशति महा प्रासाद का निर्माण हुआ हैं । १९९ आपकी शुभ निश्रा में इस महाजिनालय का शिलान्यास वि. सं. २०३१ का वैशाख वद-८ सोमवार दि. २-६-७५ को पन्नालाल लीलाचंद गुंदरवालो के शुभ हस्तक हुआ था । स्टेशन से थोडी दूर चलते ही यह बेनमून महाजिनालय का दर्शन होता हैं। तीन महाशिखर और २१ लघु शिखरो, इस तरह २४ शिखरो से सुशोभित इस प्रकार का यह मन्दिर सारे मुंबई में सर्व प्रथम बना हुआ हैं। बाहरी दृश्य में दोनो तरफ दो हाथी और उसके पीछे एक तरफ सिंहण गाय के बछडे को दुध पिलाती हुई तथा दूसरी तरफ एक गाय सिंहण के बछड़े को दुध पिलाती हुई, सचमच यह दृश्य अहिंसा धर्म को ललकार रहा हैं 1 इस महा जिनालय का संचालन श्री कांदिवली जैन श्वे. मू. संघ कर रहा हैं। श्री संघ की स्थापना वि. सं. २०१६ में हुई थी और २०२० में विशाल भूमि खंड संपादित करके सबसे पहले वि. सं. २०२२ श्री संघ के प्रेरक युगदिवाकर सूरिदेव के सानिध्य में विशाल उपाश्रय का निर्माण करके, उसके नीचे के खण्ड में वि. सं. २०२६ में चेम्बुर तीर्थ से प्राप्त श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ प्रभु के गृह जिनालय का निर्माण आपश्री की निश्रा में हुआ था । - संपूर्ण महाजिनालय तैयार हो जाने पर वि. सं. २०३६ के वैशाख सुदि १३ वार बुध. दि. ३०-४-१९८० को अंजनशलाका और वैशाख सुदि १५ को भव्य प्रतिष्ठा महोत्सव जिनालय के प्रेरक प. पू. युगदिवाकर आचार्य भगवंत श्री और उनके विशाल शिष्य परिवार की निश्रा में हुआ था । मूल गंभारे में मूलनायक श्री मुनिसुव्रत स्वामी प्रभु की श्याम वर्णीय प्रतिमाजी ५१” परिकरके साथ १०१” और विहरमान भाव तीर्थंकर श्री सीमन्धर स्वामीजी, श्री युगन्धर स्वामीजी, श्री बाहुजिन और सुबाहुजिन की चार प्रतिमाजी के साथ कुल ५ प्रतिमाजी । गंभारे के बाहरी भाग में दो काउस्सग प्रतिमाजी एक तरफ श्री नागेश्वर पार्श्वनाथ दूसरी तरफ श्री कालिकुंड पार्श्वनाथ दिखाई दे रहे हैं । मन्दिरजी में चारो तरफ आरस की सब मिलकर ३८ प्रतिमाजी तथा मंदिरजी के उपरी मंजिल पर आरस १७ प्रतिमाजी अलग अलग नामो से सभी पार्श्वनाथ प्रभु की हैं। पुरे जिनालय में पाषाण की ५५ प्रतिमाजी तथा श्री पुंडरीक स्वामी व श्री गौतम स्वामी की आरस की २ प्रतिमाजी के साथ कुल ५७ प्रतिमाजी बिराजमान हैं। पंच धातु की प्रतिमाजी, सिद्धचक्रजी, और अष्टमंगल वगैरह ५० का अंदाजा हैं । ५७ प्रतिमाजी में २४ तीर्थंकरो, ४ शाश्वत जिनेश्वरो और भावि तीर्थंकर श्री पद्मनाभ स्वामीजी की भी प्रतिमाजी हैं। For Private and Personal Use Only दिवारो पर आरस पर कोतरण किये गये श्री अष्टापद तीर्थ श्री शत्रुंजत्रय तीर्थ, श्री सम्मेत शिखर तीर्थ, श्री गिरनार तीर्थ दर्शनीय हैं। बाहरी भाग की ओर एक तरफ श्री मणिभद्रवीर, श्री धरणेन्द्रजी, श्री नाकोडा भैरूजी तथा दूसरी तरफ श्री चक्रेश्वरी देवी, श्री पद्मावती देवी एवं श्री लक्ष्मीदेवी बिराजमान हैं। जरा और बाहर की तरफ नजर धूमाते हैं तो एक तरफ श्री घंटाकर्ण वीर की देहरी तथा दूसरी तरफ
SR No.020486
Book TitleMumbai Ke Jain Mandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal M Jain
PublisherGyan Pracharak Mandal
Publication Year1999
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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