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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० मुंबई के जैन मन्दिर (३८) श्री महावीर स्वामी भगवान भव्य शिखर बंदी जिनालय २११, ओल. पांजरापोल स्ट्रीट, सी. पी. टेंक, माधवबाग, मुंबई - ४०० ००४. टे. फोन : ऑ. ३७५ ४८ २९ ऑ. केशवजीभाई, ३८८०५ ८७ श्री शांतिलाल जवेरी, ३६२ ३१ २२, ३६२ ७२ ०३ विशेष :- सर्व प्रथम सेठ मोतीशा इस मन्दिर के निर्माता थे। उसके बाद सेठ लालजीभाई हरजीभाई जामनगरवालोने बंधवाकर वि.सं. १९९५ माह सुद १३, गुरुवार को स्थापना कर श्री संघ को भेट दिया था। इसके वर्तमान संचालक सेठ मोतीशा लालबाग जैन चैरीटीज हैं। यहाँ आरस की १३ प्रतिमाजी, पंच धातु की ३९, सिद्धचक्रजी २९ सुशोभित है। मन्दिरजी में पावापुरी शोकेस एवं आ. विजय लब्धिसूरीश्वरजी म. की प्रतिमाजी भी है। मन्दिर के कम्पाउण्ड के दिवारो के आजू बाजू और पीछे की ओर अनेक ऐतिहासिक चित्रो का वर्णन आरस पर खुदे हुए दृश्य दिखाई दे रहे हैं। मूलनायक चमत्कारिक है। दिन में ३ रुप दिखाई देते हैं। इस मन्दिर में दिनभर सेकडो भाविकजनो का आवागमन होता रहता हैं। यहाँ श्री वर्धमान महिला मंडल, श्री वर्धमान जैन पाठशाला, श्री वर्धमान सेवा मण्डल, श्री जिनशासन रक्षा समिति, श्री मोतीशा लालबाग जैन स्नात्र मण्डल आदि संस्थाएँ कार्यरत है। यहाँ उपासरा, धर्मशाला एवं भोजनशाला की व्यवस्था है। जैन धर्मशाला परम पूज्य युगदिवाकर आचार्य भगवन्त श्री विजय धर्मसूरीश्वरजी म. साहेबजी की शुभ प्रेरणा से पांच मजला की आलीशान सुरत निवासी भाईचन्द तलकचन्द जैन धर्मशाला और बी. के. मोदी जैन भोजनशाला, श्री शान्ताबेन झवेरचंद महेता जैन क्लीनीक हैं। श्री मोहनलालजी जैन सेन्ट्रल लायब्रेरी और जैन पाठशाला भी हैं। मुंबई महानगर की मध्यवर्ती यह जैन धर्मशाला का खनन - शिलारोपण विधान वि. सं. २०१७ के श्रावण मासमें प. पू. सिद्धान्तरक्षक आचार्य भगवंत श्री विजय प्रतापसूरीश्वरजी म. सा. एवं धर्मशाला के प्रेरक प. पू. युगदिवाकर आचार्य भगवंत श्री विजय धर्मसूरीश्वरजी म. सा. की पुण्यनिश्रा में शेठ श्री माणेकलाल चुनीलाल शाह के शुभहस्तो से हुआ था। पूरे पांच मंजील, ५५ कमरें और तीन बडे होल वाली यह विशाल जैन धर्मशाला तैयार हो जाने के बाद उनका कलश - वास्तु मुहूर्त और उद्घाटन समारोह बडे ठाठ से वि. सं. २०२१ में ज्येष्ठ मास में प. पू. युगदिवाकर आचार्य भगवंत श्री विजय धर्मसूरीश्वरजी म. सा. की प्रभावक निश्रामें हुआ था। आलीशान और भव्य जैन धर्मशाला के भूमितल में विविधलक्षी विशाल होल, पहली मंजील पर जैन भोजनशाला, चार मंजील में बडे होल के साथ ५५ कमरों की धर्मशाळा, और बाजूके पूरे पांच मंजील के विभाग में जैन क्लीनीक और पुस्तकालय चल रहा हैं। भारत और विश्वभरके हजारो - लाखों जैन यात्रिको और प्रवासीओ सब तरह की सुविधावाली यह धर्मशाला का लाभ ले रहे हैं। जैनोके लिए आशीर्वाद रूप हैं। For Private and Personal Use Only
SR No.020486
Book TitleMumbai Ke Jain Mandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal M Jain
PublisherGyan Pracharak Mandal
Publication Year1999
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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