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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निज सरूप जाणे इसो, समकित दृष्टि जीव । मरण तणो भय नहीं मने, साध्य सदा छे शिव ॥ ३३ ॥ मृत्यु समय विचार थिरता चित्त में लाय के, भावना भावे एम । अथिर संसार ए कारमो, इणसु मुज नहीं प्रेम ॥ ३५ ॥ ह शरीर शिथिल हुआ, शक्ति हुई सब क्षीण । मरण नजीक अब जाणी, तेणे नहीं होणा दोन ॥ ३६ ॥ सावधान सब वात में, हुई करुं प्रतम काज; काल कृतांत कु जीतके वेगे लहुं शिवराज ॥३७॥ रणभभा श्रवणे सुणी, सुभट वोर जे होय । ते ततखिण रण में चड़े, शत्रु जीते सोय ३८ ॥ कुटुंब को समझाना 4 सुणो कुटुंब परिवार सहु, तुमकु कहुं विचित्र । ह शरीर पुद्गल तणो, केसो भयो चरित्र ॥ ४० ॥ देखत ही उत्पन्न भया, देखत विलय ते होय । तिणे कारण ए शरीर का, ममत न करणा कोय ॥ ४१ ॥ ओह ससार प्रसार में, भमतां वार अनंत | नव नव भव धारण कर्या, शरीर अनंतानंत ॥४२॥ जन्म मरण दोय साथ छे, छिण छिण मरण ते होय । मोह विकल ए जीवने, मालम ना पडे कोय ॥ ४३ ॥ [७४ ] For Private And Personal Use Only
SR No.020484
Book TitleMukti Ke Path Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandravijay, Amratlal Modi
PublisherProgressive Printer
Publication Year1974
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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