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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विरवां भत्र दुःख भाखियां, सुख तो सहज समाधि ! तेह उपाधि मिटे हुए, विषय कषाय श्रगाध ॥ ७ ॥ विषय कषाय टल्यां थकी, होय समाधि सार; तेणे कारण विवरी कहूं, मरण समाधि विचार ॥८॥ मरण समाधि वरण, ते निसुणो भवि सार; ग्रत समाधि प्रादरे, तस लक्षण चित्त धार ॥ ॥ जे परिणाम कषाय ना, ते उपशम जब थाय । तेह सरुप समाधिनु, ओ छे परम उपाय ॥ १० ॥ सम्यग् दृष्टि जीवन, तेहनो सहज स्वभाव | मरण समाधि व छे सदा, थिर करी ग्रातम भाव ॥। ११॥ अरुचि भई श्रसमाधि की सहज समाधिसु प्रीत; दिन दिन तेहनी चाहना, वरते हिज रीत ॥ १२ ॥ अवसर निकट मरण तणो, जब जाणे मतिव ंत । तव विशेष साधन भणी, उल्लसित चित्त अत्यंत ||१४|| जैसे शार्दूलह कु, पुरुष कहे कोई जाय । सूते क्यु' निर्भय हुई, खबर कहुं सुखदाय || १५ ।। शत्रु की फोजो घणी, प्रावे छे प्रति जोर । तुम घेरण के कारणे, करती प्रति घणो शोर ।।१६।। वचन सुणी ते पुरुष का, उठ्‌यो शार्दूल सिंह । निकस्यो बाहिर तत क्षणे, मानु अकल नबीह ॥ २० ॥ 3 [ ७२ For Private And Personal Use Only
SR No.020484
Book TitleMukti Ke Path Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandravijay, Amratlal Modi
PublisherProgressive Printer
Publication Year1974
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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