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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सांसारिक चीजे दगाखोर हैं । प्रविधि अन्याय से प्राप्त वस्तु कटुफल विपाकी है। अनीति से प्राप्त सपत्ति तथा भोग बडिशामिश की तरह आत्मा का नाश करते हैं । मच्छीमार मछली को पकड़ने के लिए पानी में जो कांटा डालता है, उस पर मांस का टुकडा लगाता है, उसे बड़िशामिष कहते है । मछली उसे खाते ही कांटा उसके मुहमें फस जाता है और वह पकड ली जाती है, मर जाती है । उसी तरह अनीति प्राप्त संपत्ति में अनीति के चिकने कर्म प्रात्मा को पकड लेते हैं और उसे निस्तेज, मलिन, व अशक्त बना देते हैं । __ एवमाह तिलोगबंधू परमकारुणिगे सम्म संबुद्ध भगवं अरिहंतेत्ति । एवं समालोचिन, तदविरुद्ध सु समायारेसु सम्म बट्टिज्जा, भावमंगलमेअं तन्निप्फत्तीए । ऐसी बाते तथा प्रात्मा को सुन्दर व सुखी बनाने का मार्ग कौन बताता हैं ? भगवत अरिहत जो तीन लोक के बधु व सच्चे स्नेही हैं, परम For Private And Personal Use Only
SR No.020484
Book TitleMukti Ke Path Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandravijay, Amratlal Modi
PublisherProgressive Printer
Publication Year1974
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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