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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दूसरों के पालन में धर्म है, वैसे कुटुंब पालन भी धर्म बन जाता है । मोह तथा प्रारभ का पोषण पाप है, पर उपरोक्त भावों से पालन धर्म बनता है; जैसे अन्य दीनदुखी. का पालन। पर उन पर ममत्व ही बौंध का कारण है। लोभ ही कषाय-स्वार्थ स्वरूप है, राग है । ____ ममता ही समता को शत्रु है, सुख को शत्रु है। समुद्र के पानी की तरंग से जैसे. कुछ मछली इकट्ठी हो गई व दूसरी जोरदार तरंग से अलग हो गई, वैसे ही कर्म की तरंगों से कुटुंब मिला हैं व बिछुड जायगा । मेरा तेरा क्या ? बुद्धि के इस भव में ही ममता को तोड। कोई 'स्वजन' आत्मा का नहीं। धर्म समझाने का प्रयत्न करे, पर न समझे तो उनकी तीव्र मोहदशा समझकर अनुक पा वाला बना रहे। _ कुटुंब पालन में उन पर उपकार हो रहा है, संताप (पीडा) किये बिना गुण करता है, मार्तध्यान व रौद्र ध्यान से बचाने का उपकार हैं। ममत्व ही मिथ्या भाव तथा बध का कारण है। प्रतः अन्तर से न्यारा-भिन्न रहे । समकित दृष्टि जीवडा, करे कुटुब प्रतिपाल । अन्तरगत न्यारा रहे, ज्यों घाइ खेलावत बाल, For Private And Personal Use Only
SR No.020484
Book TitleMukti Ke Path Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandravijay, Amratlal Modi
PublisherProgressive Printer
Publication Year1974
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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