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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लविजयजी के साथ किया था। उदयपुर के श्रीसंघ ने हमलोगों की भक्ति करने में तथा जैनधर्म की प्रभावना करने में तन, मन और धन का जो व्यय किया है, वह प्रशंसनीय और अनुमोदनीय है। श्री संघ के उत्साह, उदारता और प्रयत्न का ही परिणाम था कि इस चतुर्मास में अनेकों पब्लिक व्याख्यान हुए, जिसमें रेसिडेंट से लेकर बड़े बड़े आफिसरों का तथा हिन्दू-मुसलमान सभी जनता का हजारों की संख्या में लाभ लेना हुआ था। श्री महाराणाजी सा० की दो दफे मुलाकात लेकर धर्मोपदेश सुनाया गया था। गुरुदेव श्री विनयधर्मसूरि महारान का निर्वाणतिथि उत्सव अभूतपूर्व हुआ था, एवं जैनश्वेताम्बर महासभा की स्थापना भी हुई । इत्यादि अनेकों कार्य सुचारु रूपसे हुए थे। उदयपुर के श्रीसंघ की भक्ति, उदारता और शासन प्रेम के विषय में भी मूललेख में बहुत कुछ लिख चुका हूँ। चतुर्मास के पश्चात् भी मेवाड़ के उत्तर-पश्चिम प्रदेश में दो-ढाई महिनों तक विचरने का और वहाँ की स्थिति का अभ्यास करते हुए, उस तरफ की प्रजा को धर्मोपदेश देने का जो सौभाग्य प्राप्त हुआ, यह भी उदयपुर के श्री संघ की व्यवस्था और प्रयत्न का ही परिणाम था । इसमें खास कर के सेठ रोशनलालजी सा. चतुर, श्रीमान् मोतीलालजी सा. वोहरा, श्रीयुत कारूलालजी सा. कोठारी, भाई मनोहरलालजी चतुर एम, ए. एल एल. बी., भाई हमीरलालजी मूरडिया बी. ए. एल एल. बी., श्रीयुत अम्बालालजी सा. दोसी, श्रीमान् भँवरलालजी (मोतीलालजी सा. के पुत्र) सिंगटवाडिया, श्रीयुत For Private And Personal Use Only
SR No.020479
Book TitleMeri Mevad Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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