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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जब अच्छे पढ़े लिखे, और समझदार मनुष्य भी किसी कारण से अपने दिल में गलतफहमी को स्थान दे देते हैं, तब तो बड़ा ही आश्चर्य और दुःख होता है। 'मेवाड़' देश का विहार, वाकै में हम जैसे जैन साधुओं के लिये तकलीफों का स्थान जरूर है। ऐसी तकलीफों को उठानेवाले किसी प्राचीन मुसाफिर ने मेवाड़ के लिये कुछ वृत्तान्त कविता में लिखा है, जिस के कुछ नमूने मैंने दिये हैं। दूसरी तरफ से देखा जाय तो मेवाड़ देवभूमि है, मेवाड़ तीर्थस्थान है। मेवाड़ को भक्ति, मेवाड़ की सरलता और मेवाड़ में विचरने से होनेवाले लाभ-इनके आगे वे तकलीफें किसी हिसाब की नहीं हैं। और यही बात मैंने स्थान स्थान पर दिखलायी है। मेवाड़ भारतवर्ष का सब से श्रेष्ठ, मनोहर और इतिहास का बेजोड स्थान है, इसका भी उल्लेख मैंने कई जगह किया है। और इसी कारण से हमारे मुनिराजों को मेवाड़ में विचरने के लिये मैंने स्थान स्थान पर अपील की है, जोर दिया है और अनुरोध भी किया है। उदयपुर में वीस वर्ष के पूर्व श्री गुरुदेव की सेवा में चतुर्मास किया था, तत्पश्चात् यह दूसरा · चतुर्मास था। मैंने यह चतुर्मास, मेरे माननीय आत्मबंधु शान्तमूर्ति, इतिहास तत्त्ववेता मुनिराजश्री जयन्तविजयजी, न्याय-साहित्यतीर्थ मुनिश्री हिमांशुविजयजी तथा गुरुभक्तिपरायण मुनिश्री विशा For Private And Personal Use Only
SR No.020479
Book TitleMeri Mevad Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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