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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Anh ८० मीराँबाई झबेरी ने गुजरात में प्रचलित गर्वा गोतों में कितने ही गीतों को मीराँ की रचना स्वीकार की है। मीराँ रचित 'गीतगोविन्द की टीका' अभी तक उपलब्ध नहीं हुई है, अतएव कुछ विद्वानों की धारणा है कि सम्भवतः महाराणा कुम्भा रचित प्रसिद्ध 'रसिक-प्रिया टीका'को ही मीरा रचित मान लिया गया हो । ऐसा भी हो सकता है कि मेवाड़ पाने पर महाराणा कुम्भा की प्रसिद्ध टीका का परिचय पाकर मीराँबाई की कवि-प्रतिभा जग उठी हो और उन्होंने भी अपनी अलग टीका लिख डाली हो। परंतु मीराँ की उपलब्ध रचनाओंपर 'गीतगोविन्द'का प्रभाव इतना कम है कि सहसा यह विश्वास ही नहीं होता कि मीराँ ने कभी 'गीतगोविन्द, की टीका लिखी होगी, क्योंकि जयदेव की वह अमर कृति इतनी सरस और मधुर है कि एक बार उसके प्रभाव में प्राजाने पर फिर उससे मुक्त नहीं हुश्रा जा सकता। नरसी जी का माहरा' अथवा 'नरसी जी रो माहेरो' नामक ग्रंथ के कुछ अंश उपलब्ध अवश्य हैं परन्तु उसे मीराँ की रचना मानने में संकोच होता है । सच तो यह है कि मीराँबाई अपने गिरधर नागर में ही इतनी निमम थीं कि किसी अन्य विषय पर ग्रंथ-रचना करने का न तो उन्हें उत्साह रहा होगा न अवकाश ही । सम्भव है कि यह मीराँ की बहुत प्रारम्भिक रचना हो जबकि वे अपनी सखी सहेलियों में खेलती रहती थीं और उसी समय कभी अपनी किसी मिथुला सखा को सम्बोधन करके गुजरात के प्रसिद्ध कवि और भक्त नरसी मेहता की प्रशंमा में यह छोटा-सा ग्रंथ रच डाला हो । बोलचाल की राजस्थानी भाषा में इसी विषय पर किसी लकड़हारे की एक प्रसिद्ध रचना कही जाती है । सम्भव है उसी के आधार पर मारों ने अपनी बाल प्रतिभा के प्राबेश में इसकी रचना कर डाली हो । परन्तु साहित्यिक दृष्टि से इस ग्रंथ का विशेष महत्व नहीं है। ...' साहित्यिक दृष्टि से जिन रचनाओं का अधिक महत्व है वे हैं मीरों के फुटकर पद । इन फुटकर पदों का संग्रह सम्भवतः जनता में प्रचलित गीतों के आधार पर किया गया है। बंगाल के श्री कृष्णानंद देव व्यास के 'राग कल्प For Private And Personal Use Only
SR No.020476
Book TitleMeerabai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna Lal
PublisherHindi Sahitya Sammelan
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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