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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मीराँबाई नहीं किया जा सकता। फिर भी सम्भवतः मीरों की मत्यु स० १६०३ में नहीं हुई थी । 'व्यास-बाणी' तथा 'चौरासी वैष्णवन की वार्ता' में मीराँ-सम्बंधी अवतरणों पर विचार करते हुए हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि मीराँ स० १६२२ के बाद तक भी जीवित थी । सं० १६०३ तक मीरों की अवस्था ४५ वर्ष की भी नहीं पहुँचती। गुजरात में मीरों की प्रसिद्धि देखते हुए यह असम्भव जान पड़ता है कि वे इतनी कम अवस्था में मरी होंगी । वियोगी हरि सं०१६२५ के आसपास मीराँ का निधन मानते हैं, और कुवर कृष्ण सं. १६३० के अासपास । मत्युतिथि सं० १६३० मानने पर मीरों की अवस्था भी ७० के आसपास पहुंच जाती है जो इस कीर्ति के लिए पर्याप्त है और किसी प्रकार अधिक भी नहीं कही जा सकती। एक प्रश्न अब यह खड़ा होता है कि भरदान भाट ने जो तिथि बताई थी उसमें उसका कोई स्वार्थ तो था नहीं, उसने भी यह बात किसी आधार पर कही होगी. यद्यपि उस आधार का निर्देश नहीं किया गया। वहुत सम्भव है कि इस तिथि का सम्बन्ध प्रियादास की टीका में वर्णित उस प्रसंग से है जिसके अनुसार मेवाड़ के राणा ने मीराबाई को मेवाड़ लौटा लाने के लिए ब्राह्मणों का एक दल भेजा था । ब्राह्मण जब मीरों को लौटा लाने में समर्थ नहीं हुए तब सम्भवतः उन्होंने अपनी मर्यादा बचाने के लिए उनके मूर्ति में अंतान होने की कथा गढ़ ली जो मेवाड़ और मारवाड़ में स्वीकार कर ली गई। अस्तु, राजस्थान में मीरा के अंतान होने की तिथि सं० १६०३ प्रसिद्ध हो गई और सं० १६११ में बड़े धूमधाम से मीराँबाई के नाम से प्रसिद्ध मंदिर में उनके इष्टदेव श्री गिरधर लाल की मूर्ति की स्थापना हुई जैसा कि राधाकृष्ण दास की खोज से स्पष्ट है। इसी प्रकार मीरों का सं० १६०३ से पहले ही द्वारका पहुँच जाना अधिक सम्भव जान पड़ता है। अस्तु, मीराँ की जीवन-सम्बन्धी अावश्यक तिथियाँ इस प्रकार है : जन्म-तिथि सं० १५५६६० वि० विवाह सं० १५७३ वि० वैधव्य सं० १५८० वि० के आसपास For Private And Personal Use Only
SR No.020476
Book TitleMeerabai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna Lal
PublisherHindi Sahitya Sammelan
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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