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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवनी खंड ५६ मीराँ के निधन की तिथि मुं० देवीप्रसाद ने सं० १६०३ मानी है । वे लिखते हैं : 'राठोड़ों का एक भाट जिसका नाम भूरदान है, गाँव लूणवे, परगने . मारोठ इलाके मारवाड़ में रहता है । उसकी जबानी सुना गया कि मीराँबाई का देहांत सं० १६०३ में हुआ था और कहां हुआ यह मालूम नहीं ।' [ मीराँबाई का जीवन चरित्र पृ० २८ ] इसी मौखिक साक्ष्य पर मीराँ की मृत्यु सं० १६०३ में निश्चित की गई और अन्य इतिहासकार हरिविलास सारदा, गौरीशंकर हीराचंद श्रोमा भी इसी तिथि को प्रमाण मानते हैं । दूसरी ओर वेलवेडियर प्रेस द्वारा प्रकाशित 'मीराँबाई की शब्दावली और जीवन-चरित्र' में इसका खंडन किया गया है और आधार रूप में दो जनश्रुतियों का सहारा लिया गया है । वे जनश्रुतियाँ सम्राट् कदर का तानसेन के साथ मीराँबाई के दर्शनों के लिए थाना और मीराँ तथा गोसाई तुलसीदास के बीच पत्र-व्यवहार है । मीराँ का निधन सं० १६०३ में मानने पर ये दोनों जनश्रुतियाँ सत्य सिद्ध हो जाती है क्योंकि सं० १५६६ में जन्म ग्रहण करने वाला अकबर सं० १६०३ तक मीराँ के दर्शनों के लिए नहीं जा सकता था और सं० १५८६ में पैदा होने वाले चतुर्दश वर्षीय बालक तुलसीदास के साथ मीराँ का परमार्थी पत्र-व्यवहार असम्भव था । परंतु वे जनश्रुतियाँ उस ग्रंथ में प्रमाणिक और सत्य मानी गई हैं । अस्तु, उस ग्रंथ के लेखक मीरों का निधन सं० १६२० और १६३० के बीच किसी समय मानते हैं जैसा कि भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र ने उदयपुर दरबार की सम्मति से निर्णय किया था । 'बृहत् काव्य दोहन' में भी इसी आधार पर हरिश्चंद्र की दी हुई तिथि मान ली गई है और डा० रामकुमार वर्मा भी इसी तिथि का अनुमोदन करते हैं । परंतु जैसा कि पहले लिखा जा चुका है सम्राट अकबर का तानसेन के साथ मीरों के दर्शनार्थ श्राना और मीराँ तथा तुलसीदास जी का परमार्थी पत्र-व्यवहार — इन दोनों ही जनश्रुतियों में सत्य की मात्रा लेश भर भी नहीं है; इसलिए इन जनश्रुतियों के सहारे मु० देवीप्रसाद की तिथि का खंडन For Private And Personal Use Only
SR No.020476
Book TitleMeerabai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna Lal
PublisherHindi Sahitya Sammelan
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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