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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ मीराँबाई हरिदास बनिया की वार्ता में किसी 'जैमल की बेन' का उल्लेख मिलता है जो गुसाई जी की शिष्या हो गई थी। इस 'बेन' को कुछ विद्वानों ने ' मीराँबाई ही मान लिया है, परंतु भली भाँति विचार करने पर यह बात ठीक नहीं जान पड़ती । मीराँबाई जयमल की चचेरी बहन अवश्य थीं, परन्तु परदे में रहनेवाली तथा गुसाई विट्ठलनाथ की शिष्या होने वाली यह 'राजा जैमल की बेन' मीराँबाई के अतिरिक्त कोई अन्य बहन रही होगी; क्योंकि मीराँबाई तो अपने ससुराल में भी परदा न करती थीं और गोविन्द दुबे, रामदास पुरोहित, कृष्णदास अधिकारी आदि सभी से निर्भय भगवद्वार्ता करती थीं और वे कभी भी बल्लभ सम्प्रदाय में दीक्षित नहीं हुई जैसा कि 'चौरासी वैष्णवन की वार्ता' से स्पष्ट है । वार्ताओं के पश्चात् ध्रुवदास की 'भक्त नामावली' ( रचना- काल सं० १६६८) में मीराँ का उल्लेख तो अवश्य मिलता है, परन्तु उनके सम्बंध में किसी महत्त्वपूर्ण घटना या प्रसंग का वर्णन नहीं है, न तो उससे कोई आवश्यक निष्कर्ष ही निकाला जा सकता है; केवल चार दोहों में नाभादास के प्रसिद्ध छप्पय की प्रतिध्वनि की गई है । वे दोहे इस I प्रकार हैं : प्रति हेत । लाज छाँड़ि गिरिधर भजी, करी न कुछ कुल कानि । सोई मीराँ जग विदित, प्रकट भक्ति की खानि ॥ ललिता हूँ लइ बोलिके, तासो हौं आनँद सों निरखत फिरत, वृन्दावन रस खेत ॥ नृत्त्यत नूपुर बाँध कै, गावत लै करतार | विमल हीय भक्तन मिल्यो, तृन सम गन्यो संसार || बंधुनि विष ताकौं दयो, करि विचार चित श्रान । सो विष फिर अम्रत भयो, तब लागे पछतान ॥ नाज छोड़कर गिरधर लाल की भक्ति और विषपान - ये दोनों बातें १ डा० रामकुमार वर्मा, हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, पू ० ६८९ । For Private And Personal Use Only
SR No.020476
Book TitleMeerabai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna Lal
PublisherHindi Sahitya Sammelan
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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