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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar जीवनी खंड उचित और अनुचित सभी प्रकार के प्रभाव डालने पर भी मीरा कभी उस सम्प्रदाय में दीक्षित नहीं हुई। उनकी शिक्षा इस कोटे की हुई थी कि वे बिना किसी बाधा के माधु-संतों की संगति करती और भगवद्वार्ता करती हुई बड़े बड़े संतों और विद्वानों से मोरचा लेती थीं। उनकी प्रकृति बहुत ही स्वतंत्र जान पड़ती है जिससे वे किसी सम्प्रदाय-विशेष में न रह सकती थीं। फिर भी वे अत्यन्त उदार थीं और अन्य मतों और संतों को भाँति उनमें साम्प्रदायिक संकीर्णता न थी। जब कि पुरोहित रामदास एक ज़रा सी बात पर गालियों की बौछार करते हैं, उस समय मीराँ उन्हें घर बैठे भेंट भेजती हैं । जहाँ कृष्णदास अधिकारी मीराँ का अपमान करना ही अपना कर्तव्य और धर्म समझते थे, वहाँ मीराँ ने उनका उचित आदर किया और श्रीनाथ जी के लिए भेंट भी भेजना चाहा। वह उनके चरित्र की महानता सूचित करती है। तीसरा निष्कर्ष मीराँवाई की कीर्ति के सम्बन्ध में है। तीसरे अवतरण में जब कृष्णदास मीरों के घर पहुँचते हैं तब वहाँ हित हरिवंश और व्यास जैसे विख्यात वैष्णव मिलते हैं जो सम्भवतः मीरों की कीर्ति सुनकर उनके दर्शन के निमित्त त्र्याए जान पड़ते हैं | नुसाई हितं हरिवंश संस्कृत के अच्छे विद्वान् , भाषा के प्रसिद्ध कवि और राधावल्लभी सम्प्रदाय के प्रवर्तक ये और व्यास जी भी संस्कृत के प्रकांड पंडित और भाषा के सुकवि थे । स्वयं कृष्णदास भी मीरों के घर उनका अपमान करने ही नहीं गए थे वरन् उनका उद्देश्य भी हरिवंश और व्यास की भाँति मीराँ का दर्शन करना ही जान पड़ता है। 'दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता' में मोरांबाई का उल्लेख बहुत हो कम है । गुसाई विडलनाथ की सेविका अजब कुंवर बाई को वार्ता से पता चलता है कि मीराँचाई की ससुराल मेवाड़ में थी और उनकी किसी देवरानी का नाम अजब कुंअर बाई' था। इसके अतिरिक्त मेरता ग्राम के निवासी १ श्री गुसाई जी के सेवक अजब कुवर बाई तिनको वार्ता सोवे अजब कुंवर बाई मेवाड़ में रहेती हती मीराबाई की देरानी हती। For Private And Personal Use Only
SR No.020476
Book TitleMeerabai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna Lal
PublisherHindi Sahitya Sammelan
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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