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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवनी खंड है, अंतःसाक्ष्य के वे पद अधिकांश मीराँ की रचनाएँ नहीं है । परन्तु इस प्रकार के सभी पदों को सहसा अप्रामाणिक मानना भी ठीक नहीं है। कुछ पद तो मीरों के ही लिखे जान पड़ते हैं, परन्तु निश्चित रूप से कछ कहा नहीं जा सकता । उदाहरण के लिए देखिए : राणा जी मैं तो गोविद का गुण गास्याँ ॥ टेक ॥ चरणामृत का नेम हमारे, नित उठ दरसन जास्याँ ॥ १॥ हरि मन्दिर में निरत करास्याँ, धू धरिया धमकास्याँ ॥२॥ राम नाम का जहाज चलास्याँ, भवसागर तर जास्याँ ॥३॥ यह संसार बाड़ का कौंटा, ज्याँ संगत नहिं जात्याँ ।। ४ ।। मीरा के प्रभु गिरधर नागर, निरख परख गुण गास्याँ ।। ५ ॥ मीराबाई की शब्दावली वेलवे डियर प्रेस संस्करण पृ.६६ ] यह पद मीरों का ही लिखा जान पड़ता है। इस प्रकार के कुछ पद सम्भवतः मोरों ने लिखे होंगे, परन्तु ज्यों-ज्यों उनकी कीर्ति बढ़ने लगी, त्यो त्यो उनके सम्बन्ध में नई-नई जनश्रतियों का प्रचार बढ़ने लगा और उन्हीं के अनुरूप मीरों के नाम से नए-नए पदों का प्रचार भी होने लग गया । इन नए पदों से मीरों के पदों को छाँट निकालना यदि असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है। अतः इन पदों को अंतःसाक्ष्य के रूप में स्वीकार करना ठीक नहीं है, फिर भी इनसे बहिःसाक्ष्य का उपयोग तो किया ही जा सकता है और यही उपयोग उपयुक्त भी है। - अंतःसाध्य के इन पदों के अतिरिक्त शेष अगणित पदों में मीरों की भक्तिभावना का अद्भुत प्रवाह मिलता है जिनमें उनका जीवन सम्बन्धी बातों का निदे श नहीं है । इनमें कछ पद तो ऐसे भी है जिनमें कवि ने अपनी भक्तिभावना के ग्रावेश में अपने जीवन की ओर भी संकेत किया है । यथा : तेरो कोई नहिं रोकणहार मगन होइ मीरौं चली। टेक लाज, सरम कुल की मनांदा सिर से दूर करी। मान अपमान दोऊ धर पटके निकसी हूँ शान गली ।। १॥ xx xx For Private And Personal Use Only
SR No.020476
Book TitleMeerabai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna Lal
PublisherHindi Sahitya Sammelan
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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