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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रालोचना खंड १६५ कविता इतने ही तक सीमित नहीं है, वह इनसे भी परे है। वह क्या है, इसे आज तक किसी ने न जाना । कविता की अभिव्यक्ति शब्दों में चित्र और संगीत के द्वारा होती है । बुद्धि कल्पना द्वारा कवि अपने वर्य वस्तु का चित्र उपस्थित करता है और भावना द्वारा संगीत की सृष्टि किया करता है। चित्र-कल्पना कविता के प्रबंधकाव्य-रूप ( महाकाव्य और खंडकाव्य ) के लिए अत्यंत उपयोगी हैं और संगीत की सृष्टि गीति काव्य रूप के लिये अत्यंत श्रावश्यक समझा जाता है । यह सत्य है कि महाकाव्य और खंडकाव्यों में भी संगीत की सृष्टि होनी ही चाहिए, परन्तु वहाँ चित्र कल्पना ही प्रधान है, संगीत नहीं और इसी प्रकार गीतिकाव्यों में भी चित्र कल्पना श्रवश्य होनी चाहिए, परंतु प्रधानता संगीतसृष्टि ही की हुआ करती है । युग-युग में जब कभी कवियों की चित्र कल्पना सजीव हो उठती है तभी महाकाव्यों और पूर्व खंडकाव्यों से साहित्य का भंडार भरता है, और जब बुद्धि कल्पना के स्थान पर भावना का स्रोत उमड़ पड़ता है तब आनंद और वेदना की धारा संगीत के रूप में प्रवाहित होने लगती है और फलतः गीति-काव्यों की सृष्टि हुआ करती है । कालिदास, अश्वघोष तथा भारवि इत्यादि का युग बुद्धि कल्पना का युग था, शब्द-चित्रों का युग था, महाकाव्य और खंडकाव्यों का युग था, और जयदेव, विद्यापति, सूर और मीरों का युग भावना और अनुभूति का युग था, संगीत का युग वा और था गीति काव्यों का युग । ऐसा जान पड़ता है कि देश में जब चित्रकला का विकास होता है, तब साहित्य में भी चित्र कल्पना प्रधान हो उठती है और जब देश में संगीत की उन्नति होने लगती है तब साहित्य में भी गीति काव्यों की प्रधानता दिखाई पड़ती है । भारतीय चित्रकला के इतिहास में ईसा की सातवीं और आठवीं शताब्दी में सर्वोत्कृष्ट चित्रों की सृष्टि हुई थी और इस कला का विकास लगभग तीन चार सौ वर्षों से हो रहा था। ठीक यही समय संस्कृत के महाकाव्यों की रचना का भी है । संगीत के पुनरुत्थान के साथ-ही-साथ गीति काव्यों की प्रधानता होने लगी । मध्यकालीन उत्तर भारत में लगभग पंद्रहवीं और For Private And Personal Use Only
SR No.020476
Book TitleMeerabai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna Lal
PublisherHindi Sahitya Sammelan
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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