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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आलोचना खंड દહ सफल कवि आचार्य थे । ऊपर जिस रूपक का निर्देश किया गया है, उसकी भाषा में कहा जा सकता है कि जनता के लिए राम भक्ति को सुलभ बनाने वाले 'मानस' के रचयिता तुलसीदास एक सफल इञ्जीनियर थे । राम की भक्ति धारा को उन्होंने जिस कौशल से अपने रामचरित मानस में बाँधा है, उसका पूरा विवरण मानस-रूपक में मिलता है । कवि के शब्दों में ही देखिए: सुमति भूमि थल हृदय अगाधू | वेद पुरान उदधि धन साधू ॥ बरखहिं राम सुजस बर बारी । मधुर मनोहर मंगलकारी ॥ लीला सगुन जो कहहिं बखानी । सोइ स्वच्छता करइ मल हानी || प्रेमभगति जो बरनि न जाई। सोइ मधुरता सुसीतलताई || सो जल सुकृत सालि हित होई । राम भगत जन जीवन सोई ॥ मेधा महिगत सो जल पावन । सलिल श्रवन मग चलेउ सुहावन ॥ भरेउ सुमानस सुथल थिराना । सुखद सीत रुचि चारु चिराना | सुठि सुन्दर संवाद बर, विरचे बुद्धि विचार | तेइ एहि पावन सुभग सर, घाट मनोहर चारि ॥ सप्त प्रबंध सुभग सोपाना । ग्यान नयन निरखत मन माना ॥ रघुपति महिमा अगुन बाधा | बरनब सोइ वर बारि श्रगाधा ॥ राम सीय जस सलिल सुधा सम । उपमा बीचि विलास मनोरम || पुरइनि सघन चारु चौपाई । जुगुति मंजु छंद सोरठा सुन्दर दोहा । सोइ बहु रंग रथ अनूप सुभाव सुभासा । सोइ पराग मकरंद सुवासा ॥ सुकृत पुंज मंजुल अलि माला । ज्ञान विराग विचार मराला || मनि सीप सुहाई || कमल कुल सोहा || धुनिवरे कबित गुन जाती । मीन मनोहर ते बहु भाँती ॥ इत्यादि इस प्रकार मनोहर घाट से बँधे सप्त-सोपान-संयुक्त निर्मल-जल, कमल, मुक्ता, मीन और मराल से सुशोभित एक परम पवित्र निष्कलुष मानस की व्यवस्था करना तुलसीदास जैसे कवि- इंजीनियर का ही कौशल है । इसी कारण तुलसीदास भक्तियुग के सबसे बड़े कवि श्राचार्य हैं । परन्तु मीराँबाई ने इस प्रकार का कोई कौशल नहीं दिखाया । वे एक विशुद्ध कवि-गायिका थीं; मी० ७ For Private And Personal Use Only
SR No.020476
Book TitleMeerabai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna Lal
PublisherHindi Sahitya Sammelan
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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