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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir पू०ख०१ 208 // तरं०९ // अथ हनुमद्दशाक्षरमन्त्रवीरसाधनयोगः // " हेनुमतोऽतिगुह्यं तु लिख्यते वीरसाधनम् // स्वबीजं पूर्वमुच्चार्य पयनं च ततो वदेत् alu // नन्दनं च ततो देयं डेऽवसानेऽनलप्रिया // दशार्णोऽयं मनुः प्रोक्तो नराणां मुरसादपः // 2 // " मंत्रो यथा // "हॅपवनन घान्दनाय स्वाहा” इति दशाक्षरो मंत्रः // अस्य विधानम् // "बाह्म मुहूर्त चोत्थाय कतनित्यक्रियो द्विजः॥गत्वा नदी ततः सात्वा तीर्थ मावाह्य चाभसि // मूलमंत्र ततो जवा सिंचेदादित्यसंख्यया // 3 // " ततो वाससी परिधाय गंगातीरे पर्वते वा उपविश्य / हाँ अंगु 1 अथ भाषानुवादः-हनुमान जीका अत्यंत गुप्त वीर साधन कहा जाता है। "ई पवननंदनायस्वाहा" यह दशाक्षरका मंत्र मनुष्यों के लिये कल्पवृक्षके समान है। अब में इसके कमरे की विधि कहता है। साधक ब्राह्ममुहूर्तमें उठ संध्यावंदनादि नित्यक्रिया करने के उपरांत नदीके किनारे जाय स्नान करके तीर्थावाहनपूर्वक आठवार मूलमंत्रका जप करे फिर उस जल के द्वारा बारह बार अपने मस्तकपर अभिषेक करे / पछि वखपुगळ धारण कर गंगाके तीर बा पर्वत पर बैठ "हाँअंगुष्ठाभ्यांनमः / इस प्रकार करन्यास हृदयादिषडंगन्यास करै / तिसके पीछे अकारादि 6 स्वरवर्णीको उच्चारण करके वामनासापुट वायुको पूर्ण कर तथा ककारादिमकार पर्यंत 25 अक्षरांको उच्चारण करके दोनां नासापुटामें वायुको बन्द कर और पकारादिक्षकारांत वणीको उच्चारण क करके दक्षिणनासापुटसे वायुको रेवन करै अर्थात बाहर निकाल दे। इसी प्रकार दक्षिणनासापुटसे वायुको बैंचकर दोनों नासापुटामें कुंभक और वाम नासापुटसे रेचन करै / फिर वामनासापुटसे पूर्ण दोनों नासापुटासे धारण और दक्षिणसे रेचन करै / इस प्रकार तीनचार प्राणायाम कर मंबके अक्षरांसे अंगन्यास पूर्वक ध्यान करै / हनुमानजी संग्रामके बीच कोटि वानरीखे युनः हैं। हनुमानजी रावणको पराजय करने के निमित्त धावित होरहे है। हनुमान जीको देखकर रावण कंपायमान होरहा है। महाबीर लक्ष्मणजीको रणभूमिमें गिरे हुये देख हनुमानजी क्रांधके साथ महापर्वतको वा बभटके साथ हाहाकार ध्वनिसे तीनों लोकोंको कंपित कर रहे हैं। हनुमानजी ब्रह्माण्डव्यापी भीम कलेवरको धारण किये हुए स्थित हैं। इस प्रकार ध्यान करके छः हजार मूलमंत्रका जप करना चाहिये छः दिन इस प्रकार जप करके सातवें दिन दिनरात जप करना चाहिये / इस प्रकार जप करने पर रात्रिके चौथे पहरमें महाभय प्रदर्शनपूर्वक निश्चय हनुमानजी साधकके समीप आगमन करते हैं। यदि साधक मायाको अर्थात भयको परित्याग करने में समर्थ हो तो अभिलषित बर प्राप्त कर सकता है। विद्याको धनको राज्यको तथा शत्रु निग्रहको उसी समय प्राप्त होता है सत्य है सत्य है भले प्रकार निश्चय किया| हुआ है। इति // // 208 // For Private And Personal Use Only
SR No.020472
Book TitleMantra Maharnav
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages682
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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