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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir जपस्थानभूमि पारग्रहणं कृत्या नदीतीरे सात्वा कुशासने उपविश्य आचम्य मूलेन प्राणानायम्य देशकालौ संकीर्याभकगोत्रोमुक शाहं श्रीहनुमत्त्रीतिकामोऽमुकमंत्रेण लक्षजपरूपपुरश्चरणमहं करिष्ये इति संकल्प्य भूतशृद्धयादिकं कुर्यात् // अस्य ऋया दिकादेरजावः // "हं हनुमतेरुद्रात्मकायहुंफट् स्वाहा” इत्यंगुष्टात्यां नमः // 3 // एवमेव विधिना करन्यास हृदयादिपडंगन्यामं च चकत्वा ध्यायेत् // अथ ध्यानम् // ॐ महाशलं समुत्पाटय धावन्तं रावगं प्रति / / तिष्ठतिष्ठ रणे दृष्ट घोररावं ममचरन // 1 लाक्षार सारुणं गात्रं कालांतकथमोपमम् // ज्वलदग्गिलमन्नेत्रं मूर्यकोटिसमप्रभम् // अंगदार्महावीरवेष्टितं रुद्ररूपिणम् / एवरुपं हनुमन्तं ध्यात्वा पूजां समारभेत् // इति ध्यायेत॥ ततः पीठादी रचिते सर्वतोभद्रमंडलं कृत्वा ततः नकेमरं रक्तचंदनं धुष्टा तेन लेखनी च कृत्या ताम्रादिपत्रेष्टदलपमं विलिब्य मंडले संस्थाप्य प्रतिष्ठां चकत्वा मूलेन यूनिः प्रकल्प्यावाहनादिपुणतिरूपनारैः संपृज्य मूलेन पुष्पांज ल्यष्टकं दत्वा ततः "ॐ कुले रघणां ममवाप्य जन्म विधाय में जलधेर्जलांतः॥ लंकेश्वरं यः शमयांचकार नीतापति तं प्रणमामि भत्त्या |॥१॥"इति रामं ध्यात्वा पुष्पांजलिमादाय मूलमुच्चार्य “ॐ मंविन्मयः परो देवःपरामृतरसप्रियः। अनुना हनुमन्देहि परिवागर्चनाय मे" | | ॥१॥इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्वा पूजितास्तपिताः संतु इति वदेत॥इत्याज्ञां गृहीत्वा आवरणपूजामारभेत्। तथा च पूज्यपूजकयोरंत भाँति प्रकाशमान है और देह कोटिसर्यकी कांतिवाली है। रुद्ररूपी हनुमान जी अंगदजी आदि बड़े बड़े वीरोख युक्त हैं // 10 // इस प्रकार हनुमान जीका ध्यान करके मंत्रका जप करै / लक्ष जप पूर्ण होजाने पर हनुमानजी उस साधकपर प्रसन्न होजाते हैं। हे देवि ! तुम्हारे प्रति यह हनुमानजीका मंत्र मन सत्य कहा है // 11 // पुरुषांको ध्यानमात्र करनेसे ही सिद्धि होती है इसमें कोई सन्देह नहीं है किन्तु ध्यान भक्तिपूर्वक होना चाहिये / प्रातःकाल स्नान कर नदीके किनारे कुशाके आसनपर बैठ // 12 // प्राणायाम और षडंगन्यास सब मूलमंत्रसे करे पीछे मलमंत्रद्वारा आठ अंजलि पुष्पप्रदान कर सीता| सहित श्रीरामचन्द्रजीका ध्यान करै // 13 // इसके उपरांत हनुमान्जीका यंत्र अंकित करै / पहले केसरसहित घिसे रक्तचंदन और रक्तचंदनकी कलमसे ताम्रपत्रके उपर अष्टदल कमल दिखना चाहिये // 13 // तिसके बीच मूलमंत्र लिवकर उस महमंत्र को हनुमानजीका स्वरूप समझ कर आधाहनपूर्वक For Private And Personal Use Only
SR No.020472
Book TitleMantra Maharnav
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages682
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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