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________________ Shri Maharan Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shet Kalassagarsun yanmandir अथ द्वादशाक्षरमंत्ररूपहनुमत्कल्पः // ( गारुडीतंत्र ) देव्युवाच // शैवानि गाणपत्यानि शाक्तानि वैष्णवानि च // साधनानि च | पू० ख०२ मौराणि चान्यानि यानि तानि च // 1 // श्रुतानि देवदेवेश त्वक्रान्निःसृतानि च // किंचिदन्यत्नु देवानां साधनं यदि कथ्य बह° तं० ताम् // 2 // महादेव उवाच // शृणु देवि प्रवक्ष्यामि सावधानाध्वधारय / / हनुमत्साधनं पुण्यं महापातकनाशनम् / / 3 // एतद्गुह्यतमं तरं० 9 लोके शीघ्रसिद्धिकरं परम् // जपी यस्य प्रसादेन लोकत्रयजितो भवेत् // 4 // तत्साधनमहं वक्ष्ये नृणां सिद्धिकरं द्रुतम् // 5 // वियत्सनरकंघोरंहनुमतेतदनंतरम् // रुद्रात्मकायकवचंफडितिद्वादशाक्षरम् // 6 // एतन्मंत्रं मयाख्यातं गोपनीयं प्रयत्नतः // तवस्नेह नं भक्त्या च दामोऽस्मि तव सुन्दरि / / 7 / / एतन्मंत्रमर्जुनाय प्रदत्तं हरिणा पुरा ! / जपेन साधनं कत्या जितं सर्व चराचरम् / / 8 // मंत्रो यथा-"हं हनुमतेरुद्रात्मकायहुँफट्" इति द्वादशाक्षरो मंत्रः // अस्य विधानम् // नदीकूले विष्णुगेहे निर्जनस्थाने पवते वने वा 1 अथ भाषानुवादः-देवीजी बोली हे ईश्वर ! शिवसाधन गणेशसाधन शक्तिसाधन विष्णुसाधन सूर्यसाधन आदि अनेकसाधनोंकी रीति मैंने तुम्हारे समीप श्रवण करी है। अब में अन्यान्य देवतोंका साधन सुनने की इच्छा करती हूं सो आप कहिये // 1 // 2 // महादेवजी बोले हे देवि ! मैं इस समय हनुमसाधन कहता हूं सो तुम सावधान होकर श्रवण करो। यह साधन बड़े पुण्यका देनेवाला और बड़े बड़े जो पातक हैं उनका नाश करनेवाला है // 3 // इसकी साधनविधि अतिगुप्त है और शीघ्र सिद्धिकी देने वाली है। इस साधनके वलसे साधक तीनों लोकोंकों जय करनेमें समर्थ होसकता है // 4 // तिसके साधन की विधि में कहता हूँ जो मनुष्यों को सिद्धिकी देनेवाली है // 5 // प्रथम हं दूसरे हनुमते पीछे रुद्रात्मकाय अन्तमें हुं फट् अर्थात् "हं हनुमतेरुद्रात्मकायईफट" // 6 // यह बारह अक्षरका मंत्र जो मैने कहा इसको यत्नपूर्वक गुप्त रखना चाहिये / हे सुन्दार / मैं तुम्हारा दास हूं इस वास्ते मैंने तुम्हारे स्नेह और भक्तिके वशीभूत होकर यह मंत्र कहा है // 7 // इस मंत्रको प्रथम भगवान् श्रीकृष्णचन्द्रजीने अर्जुनसे कहा था / अर्जुनने इसी मंत्रको Ad206 // ओर अचर जगतको जीता // 8 // नदी के किनारे विष्णुभगवानके मंदिर निर्जनस्थानमें अथवा पर्वतमें एकाग्रचित्त होकर इस साधनको करै // // हनुमानजी बडे भारी पर्वतको उखाडकर रावणकी ओरको धावमान होरहे हैं और रावणसे घोर शब्द करके कहते हैं कि रे दृष्टात्मन ठहर ठहर भाग मत, हनुमानजीका वर्ण लाखके रंगके समान अरुण है, हनुमानजीका भयानक स्वरूप कालांतक यमकी समान है, इनके दोनों नेत्र अनिकी For Private And Personal use only
SR No.020472
Book TitleMantra Maharnav
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages682
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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