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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लिपि विकास तुलनात्मक चित्र)। अतः अब रह जाती हैं तीन लिपियां बंगला, गुरुमुखी तथा गुजराती। बङ्गलो:--अ उ स्वर और क घट ड ढ न फ व य ल व ष व्यञ्जन तो हिन्दी तथा बङ्गला दोनों में एक हैं, परन्तु ख ग ङ ज बटतथदधप रश ऋ हिन्दी के बङ्गलासेसरलतर हैं,हाँछ अवश्य बंगलाका हिन्दीसे सरल है। अतः हिन्दी बंगला से कहीं सरल है। बङ्गला में वर्गों के रूप क्लिष्ट होने के कारण, सौन्दर्य तथा त्वरा लेखनभी अपेक्षाकृत कम है । हिन्दी में बंगला की समस्त ध्वनियों के द्योतक चिन्ह हैं, परन्तु बंगलामें हिन्दी ण व आदि ध्वनियां के लिपि चिन्ह हैं ही नहीं । अतः बंगला की उपयोगिता हिन्दी की अपेक्षा कम है । ब तथा र में रूप-सादृश्य होने के कारण बंगला में अनिश्चितता का दोष भी आजाता है। बंगला में केवल २४ वों पर सिरबंदी है, अतः सुन्दरता भी अपेक्षाकृत कम है। इस प्रकार हिन्दी बंगला से सर्व प्रकार उत्तम है। गुरुमुखी:-अ उ स्वर और क ग च छ ज ट ठ ड ढ म र तो हिन्दी तथा गुरुमुखी दोनों में समान हैं, परन्तु घ ब ब य ल ष हिन्दी के और ख ध ण भ गुरुमुखी के सरल हैं। अतः हिन्दी गुरुमुखी से सरलता में ही नहीं अपितु त्वरा लेखन में भी श्रेष्ठतर है । यद्यपि सौन्दर्य तथा निश्चय गुण दोनों में समान हैं, तदपि अ ध ठप आदि गुरुमुखी वर्गों पर सिरबंदी नहीं है और थ तथा ब और श तथा स में बहुत कम भेद है। क्ष त्र ज्ञ ऋ ध्वनियों के लिपि चिन्ह हैं ही नहीं, अतः अव्याप्ति दोष भी पाया जाता है । इस प्रकार हिन्दी गुरुमुखी से भी श्रेष्ठ ठरहती है। गुजराती:--हिन्दी तथा गुजराती वर्णमाला में बहुत कुछ सादृश्य है, केवल सिरबंदी का भेद है। यदि हिन्दी वणों की सिरबंदी उड़ा दी जाय, तो उ ऋ स्वर और क ग घ छ न ट ड For Private And Personal Use Only
SR No.020455
Book TitleLipi Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRammurti Mehrotra
PublisherSahitya Ratna Bhandar
Publication Year2002
Total Pages85
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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