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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लिपि-विकास लिपि का आविष्कार मनुष्य समाजबद्ध प्राणी है, वह विचार-विनिमय किए बिना नहीं रह सकता। भाषण-क्रिया तो उसका जन्म-सिद्ध अधिकार था ही, अतः भाषोत्पत्ति के पूर्व आदि-काल में तो वह मूक मनुष्यों की भाँति आ-आ, ई-ई करके इंगितों द्वारा अपना कार्य चला लेता होगा, परन्तु बाद में वाक-शक्ति का विकास होने पर मौखिक भाषा द्वारा अपना कार्य सञ्चालन करने लगा होगा। मौखिक भाषा द्वारा निकट होने पर तो विचार-विनिमय हो सकता था, परन्तु दूर होने पर नहीं । अतः यह एक जटिल समस्या थी कि दर के मनुष्यों पर भाव प्रकाशन किस प्रकार किया जाय । इसके अतिरिक्त जब सामाजिक जटिलताएँ बढ़ने लगी, तो मनुष्य के सम्मुख एक प्रश्न यह भी पाया कि वह उन बातों को जिनको कि वह अपने जीवन के लिए आवश्यक समझता है अथवा जो उसे अच्छी लगती हैं, अपनी आगामी सन्तानों के लिये किस प्रकार सुरक्षित छोड़ें। ये प्रश्न भिन्न-भिन्न देशों में विभिन्न लिपियों द्वारा हल किये गये । यहाँ लिपि सम्बन्धी दो एक बातें स्मरण रखनी चाहिए। प्रथम यह कि प्राचीन काल में धर्म, साहित्य तथा इतिहास का लिपि से उतना घनिष्ट सम्बन्ध नहीं था जितना आज है । आज लिपि के अभाव में साहित्य, इतिहास आदि का होना असम्भव सा प्रतीत होता है, परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। लिपि के For Private And Personal Use Only
SR No.020455
Book TitleLipi Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRammurti Mehrotra
PublisherSahitya Ratna Bhandar
Publication Year2002
Total Pages85
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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