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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३४ www.kobatirth.org लिपि - विकास -के पहिले के बाद के रूप सिरबंदी लगाने तथा सुन्दरता लाने की चेष्टा के फल स्वरूप बने हैं । मः Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यः - कादूसरा रूप पहिले रूप से त्वरालेखन के कारण बना है । यह भी अशोक के लेखों में पाया जाता है । शेष रूप इसी से, सुन्दरता लाने तथा सिरबंदी लगाने के कारण बने हैं । रः —का दूसरा रूप सुन्दरता लाने के कारण बना है । यह बौद्ध श्रमण महानामन के लेख में ( ५८८ ई० ) में उपलब्ध है । शेष रूपान्तर त्वरालेखन अथवा सुन्दरता के कारण हुए हैं। लः--- - का दूसरा रूप हूए राजा तोरमाण के लेख में ( ५०० ई के निकट ) और तीसरा कई एक लेखों में उपलब्ध है । शेष रूप सिर बंदी लगाने सुन्दरता लाने तथा त्वरालेखन के कारण बने हैं । वः - का दूसरा रूप पहिले से त्वरालेखन तथा सिरबन्दी लगाने के कारण और दूसरे से तीसरा सुन्दरता लाने के कारण बना है ! शः - के पहिले के बाद के रूप त्वरालेखन, सुन्दरता तथा सिरबंदी लगाने के कारण बने हैं। I षः - अशोक के लेखों में इसका प्रभाव है । इसका पहिला रूप घोंडी के शिलालेख में ( २ शता० पूर्व ) में उपलब्ध है । शेष रूप त्वरालेखन तथा सिरबंदी लगाने से बने हैं । सः - - का दूसरा रूप पहिले में सिर बंदी लगाने से बना 1 तीसरा रूप गुप्त लेखों में और चौथा कई अन्य लेखों में प्राप्य है । पाँचवाँ रूप चौथे से सुन्दरता लाने अथवा वरालेखन के कारण बना है | ह: - का दूसरा रूप पहिले का रूपान्तर है । तीसरा रूप महाराज शर्वनाथ के उक्त ताम्रपत्र में उपलब्ध है । चौथा रूप भी For Private And Personal Use Only
SR No.020455
Book TitleLipi Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRammurti Mehrotra
PublisherSahitya Ratna Bhandar
Publication Year2002
Total Pages85
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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