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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir মন __लगभग ३३ वर्ष पूर्व राजगृह, नालंदा, पावापुरी एवं तन्निकटवती कई गाँवों में भूमण कर वहाँ के इतिहास-पुरातत्त्व सम्बन्धी जानकारी प्रप्त की थी। राजगृह पुस्तक लिखकर सं० २००५ में जेन सभा, कलकत्ता से प्रकाशित करवाई और पावापुरी वीर-निर्वाण भूमि के संबन्ध में विवाद खड़ा होने पर १।। वर्ष पूर्व "महातीर्थ पावापुरी” नाम से प्रमाण पुरस्सर पुस्तक लिख कर जैन श्वे० सेवासमिति से प्रकाशित की गई । उस समय नालन्दा और क्षत्रियकुण्ड के सम्बन्ध में प्रकाश डालने के लिए जैन और बौद्ध साहित्य के विश्रत विद्वान नवनालंदा महाविहार के अध्यक्ष मेरे मित्र डा० नथमलजी टाटिया ने कहा कि अब तक सरकार या ऐतिहासज्ञ विद्वान भी यह.निर्णय नहीं कर पाये है कि नालन्दा की वस्ती कहाँ पर थी ? इस विषय में लिखिये ! आचार्य अनंतप्रसाद जैन ने तो लिख दिया कि नालंदा का पता ही विश्वविद्यालय की खुदाई होने पर पाश्चात्य विद्वानों ने लगाया है। जहाँ तक जैन समाज के साहित्य और इतिहास का प्रश्न है वह कभी नालन्दा को भूला नहीं था, बाद में उसे ही. वड़गाँव कहने लगे और गुम्वरगाँव भी वही था। नालन्दा-वड़गाँव और गुबरगाँव को जैन साहित्य में बराबर याद किया गया है । इस लघु निबंध में इसी विषय पर किञ्चत प्रकाश डाला है और "कुशल निदेश" से पुनमुद्रण रूप में क्षत्रियकुण्ड की भाँति इसका भी सचित्र प्रकाशन करने का यश कलाप्रेमी तीर्थभक्त श्री महेन्द्रकुमार सिंघी ने उपार्जन किया है अतः वे धन्यवार्दाह हैं। श्री समेतशिखर महातीर्थ को प्रतिष्ठा के समय स्वर्गीय श्री नरेन्द्रसिंहजी सिंघी ने मुझे वहाँ के इतिवृत्त पर प्रकाश डालने वाली पुस्तक लिखने के लिए अनुरोध किया था। मैंने उसकी इतिहास सामग्री और अभिलेखों की नकलें भी तैयार की थी जो इतने वर्ष पड़ी रही, अब श्री महेन्द्रकुमार सिंघी ने समेतशिखर तीर्थ के संक्षिप्त इतिहास में सचित्र कला पूर्ण ग्रंथ में प्रकाशित कर आंशिक पूर्ति करदी है। अब पूरब के बडे तीर्थों में "चम्पापुरी” पर प्रकाश डालना अवशेष है जिस पर शीघ्र ही लिखने का विचार है । नालन्दा.राजगृह का एक समृद्ध उपनगर था। अनर्गल सुख समृद्धि पूर्ण होने से तत्सम्बन्धी निम्न गाथा द्रष्टव्य है : पडिसेहणणगारस्स इत्यीसद्दे ण चेव अलसद्दो । रायगिहेनगरम्मी नालंदा होइ बाहिरिया ॥३॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020451
Book TitleKundalpur
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherMahendra Singhi
Publication Year
Total Pages26
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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