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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री विजयदानसूरिजी, के समय में अलवर से पं० श्रीपति के शिष्य चांपाऋषि, कुलधर मुनि, तेजविमल, ऋषि शिवा, ऋषि गंगा छः ठाणों से पूरब देश को यात्रा करके आये थे जिसके वर्णनात्मक पूरब देश चेत्य परिपाटी में कवि भइरव ने राजगृह यात्रा के बाद इस प्रकार लिखा है : च्यारि कोस वलि तिहां थकी, वड़गाम पहुता आइए । चैत्य एक श्री वीर नउ, बहु भगति नमं तसु पाइए ॥५४।। नालन्दउ पाइउ अछइ, जिहां कोटीसर बहु वास । चवद सहस मुनि परिवर्या, प्रभु कीधी हो चउदह च उमासि ।।७।। सं० १७११-१२ में शील विजयजी ने यात्रा की थी जिसका उल्लेख उन्होंने अपनी तीर्थमाला में इस प्रकार किया है“यात्रा खाणि मुनिवर नीतिहां, वीर थूम वंदु वलि इहां ।३०। "गुहवरगामि गौतम मनि रंग” विजयदेवसूरिजी के समय में सहजसागर के शिष्य विजयसागर ने अपनी तीर्थमाला में इस प्रकार लिखा है "बाहिरि नालन्दो पाड़ो, सुण्यो तस पुण्य पवाड़ी। वीर चउद रह्यां चउमास, हवडां बड़गाम निवास ।।२३।। घर वसतां श्रेणिक वारइ, साढी कुल कोडी बारइ । बिहुँ देहरइ एक सो प्रतिमा, नवि लहियई बोधनी गणिमा ॥२४॥ गोयम गुरु पगला ठामि. प्रगटी मुनि पात्रानी खाणि । तस पासइ वाणिजगाम, आणंदोपासक ठाम ॥२५॥ दीठा ते तीरथ कहियाँ. न गिणं जे खुणइ रहिआ। हरख्या बहु तीरथ अटणइ, आन्या चउमासं पटणइ ॥२६॥ सं० १७५० में सौभाग्यविजय कृत तीर्थमाला में नालन्दा का वर्णन देखिये :राजगृही थी उत्तरे चित चेतो रे, नालंदो पाड़ो नाम जीव चित चेतो रे। वीर जिणंद जिहां रह्या चि० चउद चौमासा नाम जी० ।। वसता श्रेणिक वारमा चि० घर साढी कोड़ी बार जी० । ते हिवणा परमिद्ध छे चि० बड़गाम नाम उदार जी० १ एक प्रासाद छ जिनतणो चि० एक थूभ गाम मांहि जी० । अवर प्रासाद छ जना जिके चि० प्रतिमा मांहि नांहि जी०२ पाँच कोश पश्चिम दिशे चि. शुभ कल्याणक सार जी०। गौतम केवल तिहाँ थयो चि० यात्रा खाण विचार जी० ३ [६ For Private and Personal Use Only
SR No.020451
Book TitleKundalpur
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherMahendra Singhi
Publication Year
Total Pages26
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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