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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अप्पाणमिणं तु केवलं सुद्धं । (स.१७) इणमण्णं जीवादो। (स.२८) नपुंसकलिङ्ग के प्रथमा एवं द्वितीया एकवचन में इणमो होता है। (हे. क्लीवे स्यमेदगिणमो च।३/७९) इमं का इयं (पंचा.२) में हुआ है। इय अ [इति] इसलिए, इस प्रकार, इस हेतु। (स.२९०, चा,४२, बो.४, भा.२७) इयकग्गबंधाणं । (स. २९०) इय गाउं गुणदोसं। (चा.४२) इयर वि [इतर] अन्य, दूसरा। (निय.११) सण्णाणिदरवियप्पे । (निय.११) इयरेहिं (तृ.ब.मो.२५) इयरम्मि (स.ए.मो.१६) इरिया स्त्री [ईर्या] गमन, गति। (चा.३७) -वह पुंपिथ] ईर्यापथ। -समिदि स्त्री [ममिति] ईर्यासमिति। (चा.३२) ईर्या में संयुक्त व्यञ्जन से पूर्व इ का आगग होने पर इरिया बन गया। इव अ [इव] तरह, सादृश्य, तुल्य | ठिदिकिरियाजुत्ताणं कारणभूदं तु पुढवीव। (पंचा.८६) करेंति सुहिदा इवाभिरदा। (प्रव.७३) इसि पुं [ऋषि] मुनि, श्रमण, साधु। तं सुयकेवलिमिसिणो, भणंति लोयप्पदीवयरा। (प्रव.७३) इसिणो (प्र.ब.) इह अ [इह] ऐसा, इस प्रकार, यहाँ, इस तरह। (स.९८, प्रव.१०,३०, बो.४, भा.३१) रदणमिह इंदणीलं। (प्रव.३०) ईसर पुं [ईश्वर] भगवान्, परमेश्वर, प्रभु। ईसर न [ऐश्वर्य] वैभव, प्रभुता, सम्पन्नता| उत्तमज्झिगगेहे, दारिद्दे For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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